Wednesday 14 September 2022

शी जिनपिंग के जूनियर पार्टनर बन रहे पुतिन, भारत के लिए टेंशन वाली है यह खबर

मॉस्‍को: रूस और यूक्रेन के युद्ध और भारत में पूर्वी लद्दाख पर एलएसी पर तनाव के बीच उज्‍बेकिस्‍तान में आयोजित हो रहे शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। 15 सितंबर से समरकंद में होने वाले इस सम्‍मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंच रहे हैं। वहीं सबकी नजरें रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादीमिर पुतिन और उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग पर भी टिकी हुई हैं। इस साल फरवरी में जब यूक्रेन युद्ध की शुरुआत हुई तो उसी समय पुतिन और जिनपिंग के बीच जो केमेस्‍ट्री देखने को मिली, उसके यहां पर और मजबूत होने की संभावना जताई जा रही है। मगर यह केमेस्‍ट्री आने वाले दिनों में भारत की टेंशन को बढ़ा सकती है। पुतिन-जिनपिंग की केमेस्‍ट्री फरवरी में बीजिंग पहुंचे और यहां जिनपिंग ने काफी गर्मजोशी के साथ उनका स्‍वागत किया। यहीं से दुनिया को वह तस्‍वीर देखने को मिल गई जिसके बारे में सिर्फ कल्‍पना की गई थी। यूक्रेन युद्ध से तीन हफ्ते पहले चीन ने शीत ओलंपिक्‍स की मेजबानी की थी। दोनों ही नेता नाटो के विस्‍तार के विरोध में हैं। जब बीजिंग में इनकी मुलाकात हुई तो किसी को भी पता नहीं लग पाया कि किन मुद्दों पर इन्‍होंने चर्चा की है। अब जब युद्ध के सात माह बीत चुके हैं तो माना जा रहा है कि पुतिन इस बारे में जिनपिंग से बात कर सकते हैं। रूस की सेना को यूक्रेन में तगड़ी शिकस्‍त का सामना करना पड़ा है। रूसी सैनिकों को कीव तो छोड़ना ही पड़ा, साथ ही साथ खारकीव में भी उन्‍हें मुंह की खानी पड़ी है। आलोचना का शिकार पुतिन राष्‍ट्रपति पुतिन को दिन पर दिन नए तरीके से विरोध का सामना करना पड़ रहा है। यहां तक अब उनके अपने ही देश में उनकी आलोचना होने लगी है। पुतिन के जले पर नमक छिड़कने का काम किया है रूसी सेना ने और अब यूक्रेन की 6000 स्‍क्‍वॉयर किलोमीटर की जमीन सेना के चंगुल से आजाद है। गुरुवार को एससीओ के दौरान उनके पास मौका होगा कि वह चीनी राष्‍ट्रपति के साथ आमने-सामने बैठकर चर्चा कर सकें। एससीओ से अलग इस मीटिंग के दौरान कई मसलों पर बातचीत हो सकती है। यूक्रेन युद्ध के बाद दोनों नेताओं की यह पहली ऐसी मीटिंग होगी। रूस और चीन के रिश्‍ते यूक्रेन युद्ध के बाद और मजबूत हुए हैं। विशेषज्ञों की मानें तो पुतिन को अब चीन पर इतना भरोसा है कि वह कुछ भी कर सकते हैं। ऑस्ट्रियन इंस्‍टीट्यूट फॉर यूरोपियन एंड सिक्‍योरिटी पॉलिसी की डायरेक्‍टर वेलिना त्चाकारोवा ने कहा, 'रूस, चीन पर बहुत ज्‍यादा भरोसा करता है और यह कई गंभीर पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद उनका मजबूत रिश्‍ता इस बात का प्रतीक है कि अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय ने उन्‍हें अलग-थलग करने की जो कोशिशें की हैं वो असफल साबित हुई हैं। क्‍या हैं चीन के साथ जाने के मायने ऐसे समय में जब पश्चिमी देश रूस के खिलाफ कड़ा रुख अपनाए हुए हैं और ज्‍यादा से ज्‍यादा यूरोपियन देश नाटो में शामिल होना चाहते हैं, तो चीन की तरफ से मिलने वाला समर्थन पुतिन के लिए काफी मूल्‍यवान है। चीन, यूक्रेन के युद्ध के बाद यूरोपियन प्रतिबंधों को अनाज संकट के लिए जिम्‍मेदार बताकर रूस का समर्थन कर रहा है। चीन ने यूक्रेन युद्ध में रूस को समर्थन नहीं दिया है लेकिन उसकी आलोचना भी नहीं की। यूक्रेन युद्ध के बाद पुतिन को जिनपिंग को इस बात का भरोसा दिलाना है कि वह रूस, चीन का एक भरोसेमंद साथी साबित हो सकता है। एक ऐसा साथी जो जिनपिंग को कभी शर्मिंदा नहीं करेगा। पुतिन उज्‍बेकिस्‍तान में यह कर सकते हैं और अगर ऐसा हुआ तो हो सकता है कि एक नया गठबंधन दुनिया को देखने को मिल जाए। भारत के लिए मुश्किल रूस जहां भारत का अच्‍छा दोस्‍त है तो चीन के साथ एलएसी पर तनातनी जारी है। भारत और अमेरिका एक साथ आ रहे हैं तो रूस और चीन के बीच करीबियां बढ़ रही हैं। दूसरी तरफ चीन और अमेरिका के बीच भी ताइवान की वजह से तनाव बना हुआ है। यह वह स्थिति है जहां पर भारत बुरी तरह से फंस गया है। हालांकि रूस के साथ उसने अंतरराष्‍ट्रीय प्रतिबंधों की चिंता नहीं की है। उज्‍बेकिस्‍तान में के दौरान पुतिन और जिनपिंग का 'ब्रोमांस' भारत के लिए मुसीबत बन सकता है।


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