Monday, 12 September 2022

अमित शाह सीमांचल से कौन सा घोड़ा छोड़ने आ रहे, नीतीश को डैमेज का BJP का क्या है पूरा प्लान?

रमाकांत चंदन, पटना/किशनगंज: देश की बदलती राजनीतिक स्थिति का केंद्र बिंदु बिहार बन गया है। आंदोलनों की भूमि रही बिहार में विपक्ष की गोलबंदी की शुरुआत भर ने बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की नींद हराम कर दी है। इतना भर नहीं बीजेपी के लिए यह गोलबंदी एक ऐसी चुनौती बन कर सामने आई है, जहां से इस स्लोगन को हवा मिलने लगा है कि बिहार जीतेगा, देश जीतेगा। यही वजह भी है कि लोकसभा चुनाव के दो साल पहले से ही बीजेपी के मुख्य रणनीतिकार व गृह मंत्री अमित शाह ने सीमांचल से हिंदुत्व के घोड़े को दौड़ने का निर्णय ले लिया है। और चुनावी अश्वमेघ यज्ञ का यह घोड़ा सीमांचल से हिंदुत्व की लहर लिए किशनगंज से कैमूर तक की दूरी साधने के संकल्प के साथ छूटेगा। सीमांचल ही क्यों ? दरअसल, सीमांचल बीजेपी के लिए इसलिए उपयुक्त लगा कि यह इलाका बांग्लादेश सहित कई अन्य देशों का भी बॉर्डर है। दूसरी स्थिति यह है के यह क्षेत्र मुस्लिमों के काफी आबादी का नेतृत्व भी करता है। चुनावी आंकड़ों की बात करें तो सीमांचल स्थित किशनगंज में तकरीबन 75 प्रतिशत मुस्लिम हैं। यही वजह भी है कि बीजेपी इस लोक सभा से केवल एक बार 1999 में जीती थी वह भी सैयद शाहनवाज हुसैन के सहारे। तब यह चुनाव देशी बनाम विदेशी मुस्लिमों के बीच हो जाने के कारण बीजेपी जीत पाई। सीमांचल का ही लोकसभा क्षेत्र अररिया में 45 से 50 प्रतिशत मुस्लिम वोटर माने जाते हैं। यह बीजेपी की स्थिति अच्छी रही है। गत कुछ चुनाव की बात करें तो 2009 में बीजेपी के प्रदीप सिंह ने परचम लहराया। परंतु 2014 के लोकसभा में चुनाव हार गए। तब बीजेपी और जेडीयू अलग लड़े थे। मगर 2019 में बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप सिंह ने फिर से अपना कब्जा जमा लिया है। कटिहार में भी मुस्लिमों की संख्या 35 से 40 प्रतिशत है। सो, कटिहार लोकसभा क्षेत्र बीजेपी के लिए अच्छा सकूं वाला क्षेत्र रहा। 2009 और इसके पहले इस सीट से बीजेपी के निखिल चौधरी को जीत हासिल होती रही थी। मगर 2014 में यह सीट बीजेपी के हाथ से चली गई। तब बीजेपी को आपने सहयोगी रहे जेडीयू से यह सीट गंवानी पड़ी। 2019 के चुनाव में भी गंठबंधन में शामिल होने के बाद यह सीट जेडीयू के खाते में रह गई और बीजेपी को सशक्त सीट कटिहार से दावा जाता रहा। यहां से दुलालचंद गोस्वामी को जीत हासिल हुई। पूर्णिया लोकसभा में भी कभी बीजेपी का परचम लहराता रहता था। यहां मुस्लिमों की संख्या 35 से 40 प्रतिशत माना जाता है। यह सीट भी 2014 के लोकसभा में जेडीयू के हाथ में चली गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में यह सीट स्वतः जेडीयू के पास चली गई। यह वही सीट है जहां से बीजेपी उम्मीदवार उदय सिंह चुनाव जीतते रहे। इन कारणों से बीजेपी की नजर इन दिनों इन चार सीटों पर टिक गई है। स्थिति क्या है विधान सभा में हालांकि किशनगंज में बीजेपी का किसी भी विधान सभा पर कब्जा नहीं है। बहादुरगंज के साथ कोचाधामन पर ओबेसी की पार्टी वही ठाकुरगंज पर आरजेडी व किशनगंज पर कांग्रेस का कब्जा है। यहां बीजेपी की मुश्किलें ज्यादा हैं। यहां बीजेपी को ओवैसी की पार्टी और महागंठबंधन के बीच मुस्लिम वोटों के बंटने का ही सहारा है। अररिया लोकसभा के छह विधानसभा में बीजेपी का दो विधानसभा सीट पर और जेडीयू के पास एक है। शेष तीन विधानसभा सीटों में एक-एक कांग्रेस, आरजेडी और एक ओवैसी की पार्टी को जीत हासिल है। यह बीजेपी के लिए इसलिए भी मुफीद है कि लोकसभा सीट पर पहले भी जीत हासिल होती रही है। पूर्णिया लोकसभा के दो-दो विधानसभा क्षेत्रों पर जेडीयू व बीजेपी के कब्जे हैं। दो ओवैसी की पार्टी और एक कांग्रेस के कब्जे में है। यहां से बीजेपी को लोकसभा में जीत हासिल होते रही है। बाद में गंठबंधन धर्म के तहत यह सीट जेडीयू को चली गई। कटिहार लोकसभा के तीन विधानसभा क्षेत्रों पर बीजेपी का कब्जा है। शेष एक सीट पर माले तथा दो सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल है। यहां भी लोकसभा में बीजेपी कई बार जीते भी हैं। मिशन 25 की शुरुआत? बीजेपी सूत्रों की माने तो सीमांचल में अमित शाह की दो दिवसीय यात्रा आगाज भर है। अभी अभियान की और सूरतें तेयार हो रही है। अभी तो इस अभियान से सीमांचल के साथ हिंदुत्व की इस रथ का प्रभाव कोशी के मधेपुरा, सुपौल, मधुबनी व झंझारपुर से अंग के खगड़िया भागलपुर, मुंगेर तक पहुंचाना है। मगध और भोजपुर तक हिंदुत्व की लहर तो अभी शेष है।


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