Friday, 4 May 2018

Nirbhaya Case: Decision On The Plea Of The Guilty - निर्भया मामला: दोषियों की पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित

Nirbhaya Case: Decision On The Plea Of The Guilty - निर्भया मामला:
दोषियों की पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित
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अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली
Updated Fri, 04 May 2018 10:49 PM IST





सुप्रीम कोर्ट



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निर्भया गैंगरेप व हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दोषियों की पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया। दोषियों की ओर से कहा गया कि यह मामला फांसी का सजा का बनता ही नहीं है। मालूम हो कि विनय, पवन और मुकेश ने पुनर्विचार याचिकाएं दायर की हैं लेकिन अक्षय ने अब तक पुनर्विचार याचिका नहीं दायर की है। 


दोषी विनय और पवन की ओर से पेश वकील ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ केसमक्ष कहा कि दोषी गरीब पृष्ठभूमि से हैं। वे आदतन अपराधी नहीं हैं। उन्हें सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए। वहीं दिल्ली पुलिस की ओर से पेश वकील ने कहा कि दोषियों की इन दलीलों को पहले ही ठुकराया जा चुका है। 

बहरहाल पीठ ने इस दोषियों की पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने कहा कि अगर कोई पक्ष लिखित दलीलें पेश करना चाहता है तो वह आठ मई तक पेश कर सकता है। मालूम हो कि निचली अदलत ने दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। बाद में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा था।  





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Thursday, 3 May 2018

2017-18 में एक लाख करोड़ के लेन-देन गुपचुप तरीके से हुए, आयकर विभाग पकड़े तीन लाख मामले

2017-18 में एक लाख करोड़ के लेन-देन गुपचुप तरीके से हुए, आयकर विभाग पकड़े तीन लाख
मामले
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आयकर विभाग ने वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान हुए लेन-देन के तीन लाख ऐसे मामले पकड़े हैं जो बेनामी हैं। इन लेन-देन की रकम एक लाख करोड़ से भी ज्यादा थी।
इनकम टैक्स विभाग डिपार्टमेंट की क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन ब्रांच ने जांच के बाद इन अवैध ट्रांजेक्शन का पता लगाया है। इस जांच अभियान के दौरान 800 से भी ज्यादा सर्वे किए गए जिनमें को-ऑपरेटिव बैंक, नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनीज, अधिकृत डीलर, विदेशी मुद्रा कारोबारी, सब रजिस्ट्रार, सर्राफा कारोबारी और अस्पताल शामिल हैं। इन सभी पर किए गए सर्वे में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं।


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Wednesday, 2 May 2018

Supreme Court Collegium Decision On Justice K.m. Joseph On Hold - जस्टिस जोसेफ के मामले पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बैठक बेनतीजा

Supreme Court Collegium Decision On Justice K.m. Joseph On Hold - जस्टिस
जोसेफ के मामले पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बैठक बेनतीजा
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ब्यूरो, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Thu, 03 May 2018 02:42 AM IST





Supreme Court collegium decision on Justice K.M. Joseph on hold






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उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त करने की फाइल सरकार के पास दोबारा भेजने को लेकर कॉलेजियम बुधवार को अंतिम निर्णय नहीं ले सका। 


हालांकि इस बैठक से लगभग साफ हो गया है कि अगली बार जब भी कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति की सिफारिश सरकार को भेजेगा, उसमें जस्टिस जोसेफ के नाम के साथ कुछ और जजों के नाम भी होंगे।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों की कॉलेजियम बैठक करीब 35 मिनट चली। चूंकि बुधवार को दूसरे वरिष्ठतम जज जस्टिस जे चेलमेश्वर छुट्टी पर थे, इसलिए कयास लगाया जा रहा था कि बैठक न हो। लेकिन करीब सवा चार बजे वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और कॉलेजियम की बैठक में हिस्सा लिया।

कॉलेजियम के समक्ष दो मुद्दे थे। पहला, जस्टिस जोसेफ का नाम दोबारा भेजा जाए या नहीं और दूसरा, कलकत्ता, राजस्थान और तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के जजों को सुप्रीम कोर्ट भेजने के मसले पर विचार। फिलहाल, कॉलेजियम की अगली बैठक को लेकर कोई तारीख तय नहीं की गई है।





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Kathua gangrape case, Kashmir police chargsheet vs 3 witnesses । ZEE जानकारीः कठुआ मामले कश्मीर क्राइम ब्रांच की चार्जशीट vs तीन गवाह

Kathua gangrape case, Kashmir police chargsheet vs 3 witnesses । ZEE
जानकारीः कठुआ मामले कश्मीर क्राइम ब्रांच की चार्जशीट vs तीन गवाह
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कठुआ गैंगरेप और हत्या के मामले में सचिन शर्मा एक बहुत महत्वपूर्ण गवाह है . सचिन शर्मा जम्मू का ही निवासी है . वो मुजफ्फरनगर के मीरापुर में आरोपी विशाल जंगोत्रा के साथ एक ही घर में किराए पर रहकर पढ़ाई कर रहा था . क्राइम ब्रांच की चार्जशीट के मुताबिक कठुआ में 11 जनवरी से 15 जनवरी के बीच 8 वर्ष की बच्ची का गैंगरेप हुआ और उसकी हत्या की गई . इन तारीखों के बीच सचिन शर्मा मुजफ्फरनगर के मीरापुर में मौजूद था. और उसने मुजफ्फरनगर में परीक्षा भी दी थी.  ये परीक्षाएं 9, 11, 12 और 15 जनवरी को हुई थीं


इस मामले में सचिन शर्मा का बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वो मुजफ्फरनगर में विशाल जंगोत्रा के साथ एक ही घर में किराये पर रहता था. सचिन शर्मा इस बात को सत्यापित कर सकता है कि कठुआ में जब वारदात हुई तब विशाल जंगोत्रा मुजफ्फरनगर में उसके साथ था या नहीं ? 


सचिन शर्मा ने Zee News को बताया कि 19 मार्च 2018 को क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे पूछताछ के लिए बुलाया था. इसके बाद 31 मार्च 2018 को सचिन शर्मा ने मजिस्ट्रेट के सामने धारा-164-A के तहत बयान दिया था. किसी भी Case में मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान हमेशा बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस बयान की Certified Copy हमारे पास है . और हमारी टीम ने सचिन शर्मा से बातचीत भी की है. जिसे हम आपको आगे दिखाएंगे. लेकिन इससे पहले हम सचिन शर्मा के इस बयान के मुख्य बिंदु आपको बताते हैं. 


इस बयान में सचिन शर्मा ये कह रहा है कि आरोपी विशाल जंगोत्रा 9 जनवरी 2018 से लेकर 18 जनवरी 2018 तक मुजफ्फरनगर में ही मौजूद था . यानी सचिन शर्मा का बयान कश्मीर क्राइम ब्रांच के दावे से मेल नहीं खाता. आपको एक बार फिर याद दिला दें कि कश्मीर क्राइम ब्रांच की चार्जशीट के मुताबिक विशाल जंगोत्रा 12 जनवरी को सुबह 6 बजे से लेकर 15 जनवरी को शाम 4 बजे तक कठुआ में मौजूद था


2- सचिन शर्मा के मुताबिक क्राइम ब्रांच ने अपना मनचाहा बयान दिलवाने के लिए सचिन शर्मा के साथ मारपीट की.


3- सचिन शर्मा को टॉर्चर करके उस पर दबाव बनाया गया ताकि वो ये कहे कि विशाल जंगोत्रा अपना Phone उसे देकर कठुआ चला गया था . ये बहुत महत्वपूर्ण Point है, इसके बारे में हम आपको आगे विस्तार से बताएंगे


4- इसके अलावा मजिस्ट्रेट के सामने दिए गये बयान में सचिन शर्मा ये कह रहा है कि मारपीट के ज़रिए उस पर बार-बार ये दबाव डाला गया कि वो विशाल जंगोत्रा के फर्ज़ी हस्ताक्षर करे. 


हमारे संवाददाता राजू केरनी ने सचिन शर्मा से बातचीत की है . इस इंटरव्यू में सचिन शर्मा ने मजिस्ट्रेट के सामने कही गई बातें दोहराई हैं. इस बयान में सबसे महत्वपूर्ण बात CDR यानी Call Detail Record से जुड़ी हुई है. आपने ये सुना होगा कि क्राइम ब्रांच विशाल जंगोत्रा के साथ पढ़ने वाले छात्रों पर ये कबूल करने का दबाव बना रही है कि विशाल ने कठुआ जाने से पहले अपने Mobile Phone इन लड़कों को दे दिए थे. अब सवाल ये है कि क्राइम ब्रांच के अधिकारी ऐसा क्यों चाहते थे? इसका जवाब हम आपको देते हैं. क्राइम ब्रांच ने अपनी चार्जशीट में ये लिखा हुआ है कि उसने जांच के दौरान सभी आरोपियों के Mobile Phones की Call Details निकाले हैं. और इनसे ये पता चलता है कि सभी आरोपियों की Location घटनास्थल के आसपास ही थी. 


लेकिन जब विशाल जंगोत्रा की लोकेशन कठुआ के बजाए मीरापुर में मिलती, तो इसका जवाब क्राइम ब्रांच के पास तैयार रहना चाहिए था. इसीलिए क्राइम ब्रांच ने इन लड़कों को ये बयान देने पर मजबूर किया कि विशाल ने अपने दोनों फोन मीरापुर में ही इन छात्रों के पास छोड़ दिए थे. अब इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए, विशाल जंगोत्रा के साथ पढ़ने वाले छात्र सचिन शर्मा का ये बयान आपको एक बार फिर से सुनना चाहिए. 


सचिन के अलावा नीरज शर्मा भी मुजफ्फरनगर के मीरापुर में विशाल जंगोत्रा के साथ एक ही घर में किराए पर रहता था . नीरज शर्मा ने मजिस्ट्रेट के सामने CRPC की धारा 164-A के तहत जो बयान दिया है . उसके कुछ महत्वपूर्ण Points हम आपको बताते हैं.नीरज शर्मा के मुताबिक विशाल जंगोत्रा 6 जनवरी 2018 को कठुआ से गया और 7 जनवरी 2018 को उत्तर प्रदेश के मीरापुर पहुंचा था. नीरज शर्मा ने विशाल के साथ 9 जनवरी 2018 से 15 जनवरी 2018 तक मुजफ्फरनगर में परीक्षाएं दी थी . 


नीरज शर्मा के मुताबिक घटना के लगभग दो महीने बाद 12 मार्च 2018 की सुबह कश्मीर क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने पूछताछ के नाम पर उसे परेशान किया . अपना मनचाहा बयान दिलवाने के लिए क्राइम ब्रांच की टीम के एक अधिकारी अरफान ने उसकी पिटाई की. नीरज शर्मा के मुताबिक क्राइम ब्रांच की टीम, उससे विशाल जंगोत्रा के फर्ज़ी हस्ताक्षर करने की प्रैक्टिस करवाती थी . Zee News ने नीरज शर्मा से भी बात की है . नीरज शर्मा ने वही बातें दोहराई हैं जो उसने मजिस्ट्रेट के सामने कही थीं 


हमने आपको इस मामले में अब तक 2 महत्वपूर्ण गवाह दिखाए . ये दोनों गवाह ये बात मान रहे हैं कि विशाल जंगोत्रा उनके साथ मुजफ्फरनगर के मीरापुर में परीक्षा दे रहा था . इस मामले में तीसरा सबसे महत्वपूर्ण गवाह साहिल शर्मा है . साहिल शर्मा की गवाही इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि साहिल शर्मा और विशाल जंगोत्रा एक ही कमरे में रहते थे . साहिल शर्मा ने भी 31 मार्च 2018 को CRPC की धारा 164-A के तहत मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज करवाय़ा था. 


इस बयान के मुताबिक 6 जनवरी 2018 को साहिल शर्मा, विशाल जंगोत्रा के साथ ट्रेन से उत्तर प्रदेश के लिए रवाना हुआ था. 7 जनवरी 2018 को सुबह 11 बजे साहिल शर्मा और विशाल जंगोत्रा मीरापुर पहुंचे थे.9 जनवरी 2018 को विशाल जंगोत्रा के साथ साहिल शर्मा ने मुजफ्फरनगर के खतौली में K. K. Jain College में परीक्षा दी थी . 11 जनवरी और 12 जनवरी को विशाल जंगोत्रा ने परीक्षा दी .इसके बाद 13 जनवरी 2018 को लोहड़ी की छुट्टी थी . और 14 जनवरी 2018 को भी छुट्टी थी . इसके बाद 15 जनवरी को सभी ने एक साथ परीक्षा दी थी. साहिल शर्मा ने भी क्राइम ब्रांच द्वारा मारपीट किए जाने की बात मजिस्ट्रेट के सामने कही है .


अब आपको इस पूरे केस का एक और विरोधाभास बताते हैं. कश्मीर क्राइम ब्रांच की चार्जशीट में लिखा हुआ है कि विशाल जंगोत्रा की Attendance और बाकी सारी चीजें Manage करने के लिए उसके पिता सांझीराम ने अच्छी खासी रिश्वत दी. चार्जशीट के मुताबिक ये रिश्वत उस कॉलेज के अधिकारियों को दी गई, जहां विशाल पढ़ता था, और इसके अलावा चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के अधिकारियों को भी रिश्वत देकर Manage किया गया. लेकिन जब आप विशाल जंगोत्रा द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बैंक अकाउंट की स्टेटमैंट देखेंगे, तो आपको पता चलेगा कि उसमें पैसे ही नहीं थे. इस दौरान एक समय ऐसा भी था जब उसके अकाउंट में सिर्फ 75 रुपये थे, जिसके बाद इस अकाउंट में कठुआ से 3000 रुपये डाले गए. 


हमने तीन दिनों के दौरान अपनी Ground Reporting में इस बात का खास ख्याल रखा, कि हम हर पहलू का अध्ययन बारीकी से करें और हर पक्ष की दलीलें सुनें. और आज भी हमने वैसा ही किया. हमारे संवाददाता ने विशाल जंगोत्रा के साथ पढ़ने वाले छात्रों को 15 जनवरी और 12 जनवरी की CCTV फुटेज दिखाई. और उनसे ये पूछा कि क्या वो, CCTV फुटेज में दिखाई दे रहे व्यक्ति को पहचानते हैं? और उनका जवाब सुनने के बाद स्थिति एकदम साफ हो गई. 


पिछले तीन दिनों से हम लगातार एक बात पर ज़ोर दे रहे हैं, कि हमारी Investigating Reporting का मकसद सिर्फ और सिर्फ एक है. और वो मकसद है, 8 वर्ष की बच्ची को इंसाफ दिलाना. लेकिन इसके साथ-साथ हमें ये नहीं भूलना चाहिए, कि जांच में छेड़-छाड़ या खामियों की वजह से किसी निर्दोष को फांसी के तख्ते पर ना लटका दिया जाए. Fair Investigation और Fair Trial का मुख्य उद्देश्य यही होता है, कि दोषी को हर कीमत पर सज़ा मिलनी चाहिए लेकिन किसी निर्दोष को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए. यहां हम ये भी साफ कर देना चाहते हैं कि हम किसी को क्लीन चिट नहीं दे रहे हैं. 
हम सिर्फ ये कह रहे हैं, कि इस मामले में अब तक जो जांच हुई है उसमें कई खामियां हैं और अब नये सबूत सामने आने के बाद इसकी जांच नए सिरे से होनी चाहिए. इस जांच की ज़िम्मेदारी CBI को सौंपी जानी चाहिए. तभी कठुआ का पूरा सच आप सबके सामने आएगा.


आपने नोट किया होगा कि जब ये मामला पहली बार National Media में आया . तब बहुत सारे News Channels ने तुरंत, बिना सोचे समझे और बिना जांच पड़ताल किए ही 8 वर्ष की बच्ची की तस्वीर दिखाई. और उसका नाम भी बताया . इसके बाद सोशल मीडिया पर इसे Viral कर दिया गया. इसका असर ये हुआ कि इस पूरे मामले को सांप्रदायिक एंगल दे दिया गया. एक खास विचारधारा के लोगों ने इसे लेकर दुष्प्रचार किया और पूरी दुनिया में भारत की बदनामी शुरू हो गई. बहुत सारे देशों के मीडिया में इसके बारे में ख़बरें छापी गईं. United Nations के Secretary General, ने भी इस मामले पर चिंता जताई थी . 


यहां तक कि आतंकवादी हाफिज़ सईद ने भी पाकिस्तान से एक बयान जारी किया था जिसमें उसने अपने एजेंडे के हिसाब से भड़काऊ बातें कही थीं. 


जब बिना किसी तथ्यात्मक रिपोर्टिंग के इस तरह की घटनाएं सामने आई तो हमें ऐसा लगा कि हमें इस मामले की गहराई में जाना चाहिए . ये इसलिए भी ज़रूरी था क्योंकि कठुआ की 8 वर्ष की बच्ची को इंसाफ मिलना ज़रूरी था . इसके बाद हमने 16 अप्रैल को ही कठुआ के रसाना गांव से Ground Reporting की थी . जिससे इस मामले में कई नए पहलू सामने आए . इसके बाद भी हमने अपनी जांच जारी रखी . और हमें जिस तरह के सबूत मिले उनसे ऐसा लगता है कि इस चार्जशीट में झूठ की मिलावट है .


अंत में हम यही कहना चाहते हैं कि हम ना तो पुलिस हैं, ना सीबीआई हैं, ना जासूस हैं, और ना ही हमारे पास वो संवैधानिक शक्तियां हैं जिनसे हम सारे रिकॉर्ड्स को खंगाल सकें, उन्हें चेक कर सकें. एक न्यूज़ चैनल जितनी जांच कर सकता है, जितनी तहकीकात कर सकता है वो हमने की. अब ये केस सुप्रीम कोर्ट में है, इसकी अगली सुनवाई 7 मई 2018 को होगी. और ये सुनवाई देश के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच के सामने होगी. अब ये पूरा मामला न्यायपालिका, पुलिस अधिकारियों, जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार के सामने हैं. हमें लगता है कि इस मामले में कश्मीर क्राइम ब्रांच की चार्जशीट पर यकीन नहीं किया जा सकता. इसलिए इसकी CBI जांच होनी चाहिए




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जस्टिस जोसेफ मामले में सरकार की सफाई, नाम वापसी का उत्तराखंड फैसले से कोई संबंध नहीं

जस्टिस जोसेफ मामले में सरकार की सफाई, नाम वापसी का उत्तराखंड फैसले से कोई संबंध नहीं
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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ की पदोन्नति की सिफारिश थी, लेकिन केंद्र सरकार ने कॉलेजियम की इस सिफारिश को ठुकरा दिया था. इस पर सरकार ने सफाई दी है कि सिफारिश ठुकराने के पीछे उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन का मामला कतई नहीं है. सरकार ने बुधवार को इस बात को खारिज कर दिया कि उत्तराखंड के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ की सुप्रीम में नियुक्ति के प्रस्ताव को उसने इसलिए ठुकरा दिया कि उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को पलट दिया था.


कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसलों से सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा भेजे गए प्रस्तावों पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकती है. प्रसाद ने कहा कि वह पूरे अधिकार के साथ इस बात से इनकार करते हैं कि इसका उससे कोई लेना-देना है. उन्होंने कहा कि अपने रूख का समर्थन करने के लिए उनके पास दो स्पष्ट कारण हैं.


यह भी पढ़ें- जस्टिस जोसेफ की पदोन्नति पर फैसला टला, कॉलेजियम की बैठक रही बेनतीजा


कानून मंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में तीनचौथाई बहुमत के साथ सरकार चुनी गई है. दूसरा, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जेएस खेहर ने उस आदेश (न्यायमूर्ति जोसेफ) की पुष्टि की थी. न्यायमूर्ति खेहर ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून को भी खारिज कर दिया था. इसके बाद भी वह राजग सरकार के कार्यकाल में प्रधान न्यायाधीश बने. 
प्रसाद ने न्यायपालिका के संबंध में पूर्व प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया और कहा वह सेवानिवृत्त न्यायाधीश के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे. 


सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति जोसेफ की नियुक्ति को रोकने के फैसले के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में प्रसाद ने कहा कि सरकार के खिलाफ प्रायोजित आरोप लगाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि आमतौर पर और विशेष रूप से कांग्रेस द्वारा सरकार के खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं कि उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन संबंधी उनके फैसले को लेकर उनकी नियुक्ति को रोका गया.


बता दें कि सरकार ने 26 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम से कहा था कि वह न्यायमूर्ति जोसेफ के संबंध में अपनी सिफारिश पर पुनर्विचार करे. 




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