नई दिल्ली: मुलवंतराय हिम्मतलाल मांकड़ उन दुर्लभ क्रिकेटरों में से एक थे जिन्हें लॉर्ड्स में एक ही टेस्ट में शतक बनाने और पांच विकेट लेने का गौरव प्राप्त था। पांच दशक से अधिक समय तक उनके और उनके साथी पंकज रॉय के नाम टेस्ट मैच में 413 रन की विश्व रिकॉर्ड साझेदारी दर्ज रही। यहां तक कि जनवरी 1956 में चेन्नई में न्यूजीलैंड के खिलाफ उनकी 231 रन रन की पारी लगभग तीन दशक तक किसी भारतीय क्रिकेटर का सर्वाधिक व्यक्तिगत टेस्ट स्कोर रहा जिसे सुनील गावस्कर ने 1983 में पीछे छोड़ा। बिना मतलब घसीटा जाता है नाम वह शायद 40 और 50 के दशक में एमेच्योर खिलाड़ियों के बीच शुरुआती पेशेवर खिलाड़ियों में से एक थे जब क्रिकेट को आजीविका का स्रोत नहीं माना जाता था। उन्हें क्रिकेट जगत ‘वीनू’ के नाम से जानता है। उन्होंने 44 टेस्ट में 2109 रन बनाने के अलावा 162 विकेट भी चटकाए। वह शायद स्वतंत्रता के बाद के पहले क्रिकेट सुपरस्टार थे लेकिन पिछले 75 वर्षों से जब भी कोई बल्लेबाज गेंदबाजी छोर पर क्रीज छोड़कर आगे बढ़ते हुए चतुराई दिखाकर रन चुराने की कोशिश करता है और गेंदबाज उसे वैध तरीके से रन आउट कर देता है तो , भारत के महानतम क्रिकेटरों में से एक का नाम बार-बार इसमें घसीटा जाता है। क्रिकेट इतिहास में पहली बार हुआ था ऐसा यह 1947-48 में ऑस्ट्रेलिया में भारत की पहली श्रृंखला के दौरान मेजबान टीम के सलामी बल्लेबाज बिल ब्राउन को मांकड़ द्वारा आउट करने से जुड़ा है। उन दिनों अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) को इंपीरियल क्रिकेट कांफ्रेंस के रूप में जाना जाता था। आईसीसी में ‘इंपीरियल’ नाम ही कहानी बयां करता है। राष्ट्रमंडल देशों से जुड़ा एक खेल जिसके नियम लॉर्ड्स स्थित मेरिलबोन क्रिकेट क्लब (एमसीसी) के कांफ्रेंस रूम में सूट-बूट पहने लोग तैयार करते थे। खेल भावना का शब्द बड़ दर्द देता है वह स्थान जहां अस्पष्ट ‘खेल भावना’ शब्द का जन्म हुआ था और जहां दीप्ति शर्मा नाम की एक युवा भारतीय महिला क्रिकेटर ने दिखाया कि नियम का पालन करना क्या होता है। हर कोई जानता है कि मांकड़ ने ऑस्ट्रेलियाई सलामी बल्लेबाज ब्राउन को 18 रन पर रन आउट कर दिया था क्योंकि वह 12 से 18 दिसंबर के बीच खेले गए सिडनी टेस्ट मैच के दौरान गेंदबाजी छोर पर बार-बार क्रीज छोड़कर आगे निकल रहे थे। टेस्ट ड्रॉ हो गया और यह घटना खेल के दूसरे दिन (13 दिसंबर) हुई। हालांकि बहुत कम लोग जानते हैं कि टेस्ट मैच से पहले भारतीय टीम ने इसी स्थान पर ‘ऑस्ट्रेलियाई एकादश’ के खिलाफ अभ्यास मैच खेला था। रूपा द्वारा प्रकाशित लेखक गुलु ईजेकील की पुस्तक ‘मिथ बस्टिंग-इंडियन क्रिकेट बिहाइंड द हेडलाइंस’ में इस बात का विस्तृत इतिहास है कि रन आउट होने से पहले और बाद में कैसे चीजें सामने आईं। ब्राउन का यह दूसरा अपराध था इसका सबूत पूर्व ऑस्ट्रेलियाई प्रथम श्रेणी क्रिकेटर से पत्रकार बने गिन्टी लश का लेख था जो ‘टेलीग्राफ’ के लिए श्रृंखला को कवर कर रहे थे। यहां तक कि 14 दिसंबर 1947 को ‘संडे टेलीग्राफ’ में लश के लेख में का शीर्षक था ‘मांकड़ अगेन ट्रैप्स बिल ब्राउन’ (मांकड़ ने फिर बिल ब्राउन को आउट किया) था। लेख में कहा गया है: ‘ब्राउन के आउट होने से मेंबर्स स्टैंड में तीखी चर्चाएं हुईं। यहां तक कि प्रेस बॉक्स में भी बहस हुई क्या मांकड़ खेल भावना के उल्लंघन के दोषी थे। ब्राउन-मांकड़ द्वंद्व का इतिहास है यह है कि एससीजी में भारत बनाम ऑस्ट्रेलियाई एकादश मैच में बहुत चतुराई से गेंदबाजी छोर पर आगे बढ़ने के लिए ब्राउन को मांकड़ द्वारा चेतावनी दी गई थी।’ ब्राउन को बताया था मुर्ख ब्राउन को उसी मैच में मांकड़ ने दोबारा आगे बढ़ने के लिए रन आउट किया। कल मांकड़ ने दूसरी बार ब्राउन को रन आउट किया। लश ने अपनी खबर में लिखा था कि ब्राउन ‘मूर्ख’ थे कि वह फायदा उठाने की कोशिश कर रहे थे। संडे टेलीग्राफ में लश की रिपोर्ट के एक हफ्ते बाद एक अन्य दैनिक ‘ट्रुथ’ (21 दिसंबर 1947 को प्रकाशित) में एक और खबर छपी जिसमें कहा गया कि मांकड़ ने स्वीकार किया कि टेस्ट मैच के दौरान उन्होंने ब्राउन को चेतावनी नहीं दी थी लेकिन उन्होंने आर्थर मॉरिस को अपने साथी को सावधान करते हुए सुना था। उस खबर के अनुसार मांकड़ ने मॉरिस को यह कहते हुए सुना था ‘देखो बी बी, तुम वही काम फिर से कर रहे हो।’ वीनू मांकड़ बाएं हाथ के एक पारंपरिक स्पिनर थे और इसीलिए ब्राउन के बार-बार आगे निकलने ने उन्हें तकनीकी रूप से प्रभावित किया। एलएच कीर्नी ने 19 दिसंबर 1947 को ‘कूरियर मेल’ में अपने लेख में समझाया। दरअसल मांकड़ ने कीर्नी को कारण बताया था और पहले टेस्ट के दौरान ही सूचित कर दिया था कि वह ब्राउन को गेंदबाजी छोर पर आउट कर देंगे। कीर्नी ने लिखा, ‘हाल ही में ब्रिसबेन में वीनू ने मुझे इस वादे के तहत अपने कारण बताए कि मैं इसे तब तक नहीं साझा करूंगा जब तक कि वह ब्राउन को वह दूसरी बार नहीं आउट कर देते।’ उन्होंने आगे लिखा, ‘मांकड़ ने मुझ पर विश्वास करते हुए बताया कि बाएं हाथ के गेंदबाज होने के नाते जब ब्राउन गेंदबाजी छोर पर क्रीज को छोड़कर आगे बढ़ते हैं तो उनका ध्यान भटकाते हैं क्योंकि जब वह गेंद फेंकने जा रहे होते हैं तो उनकी नजर ब्राउन पर होती है जो मूव कर रहे होते हैं।’ मांकड़ ने कहा, ‘मेरी दृष्टि प्रभावित होती है और मेरी गेंदबाजी एकाग्रता पर असर पड़ता है। मैंने सिडनी में (अभ्यास मैच में) ब्राउन को चेतावनी दी थी कि जब तक गेंद मेरे हाथ से छूट नहीं जाए तब तक गेंदबाजी छोर से आगे नहीं बढ़े लेकिन ब्राउन ने चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया।’ कीर्नी ने बताया, ‘मांकड़ ने समझाया कि एक दाहिने हाथ का गेंदबाज को गेंदबाजी छोर पर बल्लेबाज के मूवमेंट से उतना असर नहीं पड़ता क्योंकि जब गेंद दाएं हाथ के गेंदबाज के हाथ से निकल रही होती है तो उसे रन चुराने का प्रयास करते हुए गेंदबाज नजर नहीं आता। कुछ लोग तर्क देते हैं कि मांकड़ ने जो किया वह क्रिकेट नहीं है। यह हास्यास्पद है। इसी तरह यह दावा क्यों नहीं किया जाता है कि बल्लेबाज के लिए रन चुराने की कोशिश में क्रीज से आगे निकलना अनुचित है।’ वीनू मांकड़ ने 13 दिसंबर 1947 को धोखा नहीं दिया और 24 सितंबर 2022 को दीप्ति शर्मा भी समान रूप से सही थीं।
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