नई दिल्ली: मातृभूमि के लिए शहादत देने वाले जांबाज शहीदों की संख्या कम नहीं है। इसी में से एक थे सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के राम कृष्ण वाधवा। 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में पंजाब की राजा मोहतम पोस्ट पर अपने प्राणों की आहुति देकर पाकिस्तानी फौज के मंसूबों को नाकाम करने वाले राम कृष्ण वाधवा बीएसएफ को पहला महावीर चक्र दिलाने वाले शहीद थे। मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। उन्हीं के बलिदान को याद कर आज बीएसएफ शहादत दिवस मना रहा है। बीओपी राजा मोहतम में हर साल शहादत दिवस 11 दिसंबर को शहीद असिस्टेंट कमांडेंट आरके वाधवा के साथ-साथ बीएसएफ के 8 बहादुर सैनिकों के सम्मान के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने 11 दिसंबर 1971 को देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। इस मौके पर शहीदों के परिजनों का सम्मान कर बीएसएफ के उन जवानों को याद किया जाता है। इस मौके पर बड़ा खाना का आयोजन भी किया जाता है। बीएसएफ ने बताया कि दिसंबर 1971 में भारत-पाक युद्ध अपने चरम पर था। सीमा सुरक्षा बल की 31वीं बटालियन पश्चिमी सीमाओं के पंजाब प्रांत की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दुश्मनों से लोहा ले रही थीं। राम कृष्ण वाधवा की तैनाती भी इसी बटालियन में थी। दिसंबर 1971 के पहले सप्ताह में बीएसएफ को राजा मोहतम पोस्ट को कब्जे में लेने का आदेश मिला। इसके लिए बीएसएफ ने राम कृष्ण वाधवा को नियुक्त किया। 7 दिसंबर को राम कृष्ण वाधवा महज दो प्लाटूनों के जांबाजों के साथ दुश्मन की तरफ बढ़े और राजा मोहतम पोस्ट पर धावा बोल दिया। यहां पाकिस्तान की 9 बलूच रेजिमेंट की कंपनी कब्जा जमाए बैठी थी। वाधवा के नेतृत्व में बीएसएफ के जांबाज बहादुरी से लड़े और तीन घंटे की निर्णायक लड़ाई के बाद दुश्मनों को वहां से खदेड़ दिया। पाकिस्तान को भारी नुकसान उठाना पड़ा और पोस्ट पर भारतीय फौज ने कब्जा कर लिया। जानकारी के मुताबिक तीन दिन बाद पाकिस्तानी फौज की पूरी बटालियन ने राजा मोहतम पर फिर से हमला बोल दिया। उनकी तोपों ने पोस्ट पर गोले बरसाने शुरू किए। ऐसी कठिन परिस्थिति में भी राम कृष्ण वाधवा ने न तो हौसला छोड़ा और न ही नेतृत्व छोड़ा। वाधवा ने दुश्मन को पोस्ट पर आने से रोके रखा। 11 दिसंबर को पाकिस्तान ने भारी बमबारी की, फिर भी राम कृष्ण वाधवा अपने साथियों के साथ पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देते रहे। इसी बीच दुश्मनों की गोलीबारी में वाधवा गंभीर रूप से घायल हो गए। वे लहूलुहान हालत में आखिरी सांस तक दुश्मनों से लड़ते रहे और मातृभूमि की रक्षा में रणभूमि में ही वीरगति को प्राप्त हो गए।
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