Saturday 17 December 2022

मुंबई में MVA का महामोर्चा, शक्ति प्रदर्शन या मजबूरी, BJP के लिए कितनी बड़ी चुनौती, समझिये सियासी मायने

मुंबई: महाराष्ट्र (Maharashtra) में बीते कुछ दिनों से छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj), सावित्रीबाई फुले, महात्मा फुले, बाबा साहेब आंबेडकर जैसे महापुरुषों के अपमान को लेकर संग्राम छिड़ा हुआ है। अब इसी बात को विपक्ष ने मुद्दा बना लिया है जिसके तहत आज देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में महाविकास अघाड़ी (Mahavikas Aghadi) समेत तमाम समान विचारधारा वाले दलों ने मिलकर हल्ला बोल महामोर्चा आयोजित किया गया। यह महामोर्चा विपक्ष की एकजुटता और ताकत को प्रदर्शित करने के लिए भी किया गया। आज के इस मोर्चे में कांग्रेसी, एनसीपी, उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट, समाजवादी पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी जैसे तमाम छोटे संगठनों ने समेत अनेक छोटे संगठनों ने अभी इस महामोर्चा में हिस्सा लिया। महाविकास अघाड़ी का कहना है कि बीजेपी के नेता लगातार महापुरुषों का अपमान कर रहे हैं। इस बात से जनता में है बेहद नाराजगी है। छत्रपति शिवाजी महाराज महात्मा फुले, डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर को लेकर आपत्तिजनक बयान दिए गए लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से इन नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। सिर्फ वेट एंड वॉच की भूमिका में केंद्र सरकार नजर आ रही है। किस नेता ने क्या कहा था? कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी, मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा, विधायक प्रसाद लाड और मंत्री चंद्रकांत पाटील ने विवादित बयान दिए थे। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शिवाजी महाराज को पुराने जमाने का हीरो कहा था। जबकि चंद्रकांत पाटिल ने यह कहा था कि कर्मवीर भाऊराव पाटिल, बाबा साहेब फुले ने स्कूल शुरू किया लेकिन उन्हें अनुदान नहीं मिला और उन्हें लोगों ने भीख मांगनी पड़ी। वहीं प्रसाद लाड यह कहकर विवादों में आ गए थे कि छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म महाराष्ट्र के कोंकण में हुआ था। जबकि राज्य के मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा ने यह कहा था कि शिवाजी महाराज खुद के लिए नहीं बल्कि हिंदवी स्वराज के लिए आगरा से बाहर आये थे। बिल्कुल उसी तरह से महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ भी पुरानी शिवसेना से बाहर आए हैं। महामोर्चा के सियासी मायने क्या हैं? इस महामोर्चा के जरिये विपक्ष राज्य की शिंदे सरकार और केंद्र की मोदी सरकार को घेरने में जुटा है। हालांकि, आगामी बीएमसी चुनाव के मद्देनजर विपक्ष के लिए यह मोर्चा बेहद अहम माना जा रहा है। ख़ासतौर पर उद्धव ठाकरे के लिए बीएमसी चुनाव में जीत नाक का सवाल बना हुआ है। ठाकरे परिवार को पराजित करने के लिए बीजेपी नेता एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। विपक्ष की एकजुटता और महामोर्चे का महत्त्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि कल तक बीएमसी चुनाव को खुद के दम पर लड़ने की बात करने वाली कांग्रेस के नेता भी अब चुनाव में गठबंधन की बात कर रहे हैं। हाल में हुए जिला पंचायत और नगर पंचायत के चुनावी नतीजे में बीजेपी और शिंदे गुट को खासी बढ़त मिली थी। शिंदे-फडणवीस गठबंधन को टक्कर के लिए एमवीए का शक्ति प्रदर्शन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बीजेपी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है। इसके अलावा वो सत्ता में भी है। वहीं दूसरे नंबर की पार्टी रही शिवसेना अब दो धड़ों में बंट गयी है। जिसमें सबसे ज्यादा विधायक और सांसद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ हैं। उद्दव गुट के साथ बस गिने चुने एमपी और एमएलए हैं। शिंदे-फडणवीस सरकार को भेद पाना विपक्ष के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसकी भी अपनी वजह है, पहली वजह यह है कि उद्धव ठाकरे गुट काफी कमजोर हो चुका है और अब उनके पहले जितने विधायक और सांसद जीतकर आएंगे इसपर असमंजस के हालात हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी के महाराष्ट्र प्रेजिडेंट नाना पटोले अकेले चुनाव लड़ने की बात करते हैं। हालांकि वो भी यह जानते हैं कि महाराष्ट्र में कांग्रेस मजबूत स्थिति में नहीं है। अशोक चव्हाण के अलावा पार्टी के पास विपक्ष को टक्कर देने वाला कोई नेता नहीं है। इन तीनों ही दलों में सबसे मजबूत स्थिति में फ़िलहाल एनसीपी नजर आ रही है। पार्टी को अभी भी सुपर नेता शरद पवार से उम्मीद है, पिछले चुनाव में शरद की मेहनत और एक तस्वीर ने पार्टी को पचास से ज्यादा सीटें दिलवाईं थी। बीजेपी ने भी दिया मोर्चे से जवाब मुंबई बीजेपी अध्यक्ष शेलार ने कहा कि महाविकास अघाड़ी द्वारा आयोजित किए गए विरोध मार्च का बीजेपी भी सड़कों पर उतर कर जवाब दिया। बीजेपी ने सवाल पूछा कि महापुरुषों के अपमान का मुद्दा उठाने वाले उद्धव ठाकरे सुषमा अंधारे द्वारा वारकरियों के अपमान पर चुप क्यों हैं? संजय राउत ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के जन्मस्थान का गलत उल्लेख किया। इस पर वे कुछ बोलेंगे क्या? बीजेपी द्वारा शनिवार को जगह-जगह पर 'माफी मांगो' आंदोलन किया गया।


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