नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने हाल ही में सांसदों के लिए खास लंच का आयोजन किया। इस लंच में प्रधानमंत्री () भी शामिल हुए। इस लंच में प्रधानमंत्री समेत सभी सांसदों के सामने मिलेट्स से बने खास भोजन परोसे गए। इस स्पेशल लंच में बाजरे से बनी रोटियां, बाजरे की खिचड़ी , रागी से बना इडली-डोसा परोसा गया। इस लंच की खूब चर्चाएं हुई । आप सोच रहे होंगे कि आखिर लंच में इस तरह का खाना क्यों परोसा गया? चावल, रोटी, सब्जी के बजाए ज्वार-बाजरे की बनी डिश के साथ ये स्पेशल लंच खास मकसद है। दरअसल पीएम नरेन्द्र मोदी ने ने साल 2023 को अंतरराष्ट्रीय वर्ष के तौर पर मनाने का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने भी साल 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष बनाने की घोषणा कर दी है। ज्वार-बाजरा, जिसे सुपर फूड ( Super Food) कहा जाता , आखिर क्यों केंद्र सरकार इस पर जोर दे रही है?
सुपर फूड पर सरकार का जोर
मोटे अनाज वाली फसले यानी मिलेट क्रॉप के तौर पर भारत में ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुट्टू जैसे फसलों की पैदावार होती है। भारत में इसकी पैदावार करने वाले 85 फीसदी किसानों की आमदनी कम है। सरकार मिलेट वर्ष। के जरिए मोटो अनाजों के खपत पर जोर देना चाहती है, ताकि इन किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी हो। अगर वैश्विक स्तर पर देखें तो वैश्विक उत्पादन में भार की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत की है। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक साल 2020 में बाजरा का वैश्विक उत्पादन 30.464 मिलियन मीट्रिक टन था। इसमें भारत की हिस्सेदारी 12.49 एमएमटी थी। भारत में राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश में इसकी पैदावार सबे अधिक होती है, जिसमें सबसे अधिक हिस्सेदारी राजस्थान की है। भारत में ज्वार, बाजरा, कुट्टू समेत 16 तरह के मिलेट क्रॉप की पैदावार होती है।किसानों की चांदी
भारत न केवल मोटे अनाज का बड़ा उत्पादक है, बल्कि इसका बड़ा निर्यातक देश भी है। साल 2021-22 में बाजरा के निर्यात में 8.02 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। अमेरिका, ब्रिटेन , यूएई, नेपाल, सऊदी अरब जैसे देश मिलेट के बड़े निर्यातक देश है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत बाजरा का पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक देश है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत ने 26.97 मिलियन डॉलर का बाजरा निर्यात किया। बाजरा के प्रमुख निर्यातक देश अमेरिका, रूस, यूक्रेन, भारत, चीन, नीदरलैंड, फ्रांस, पोलैंड और अर्जेंटीना हैं। भारत में मिलेट अनाजों पर जोर के इसका उत्पादन बढ़ेगा। इसकी पैदावार करने वाले किसानों को आर्थिक मजबूती मिलेगी। किसानों की आर्थिक मजबूती का लाभ देश की अर्थव्यवस्था पर सीधे तौर पर मिलेगा। मिलेट क्रॉप का निर्यात बढ़ेगा और देश के खजाने में बढ़ोतरी होगी। मिलेट वर्ष मनाने के पीछे सरकार का मकसद न केवल लोगों को मोटे अनाज के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना है बल्कि किसानों को भी मोटा अनाज उगाने के लिए प्रेरित करना है। दरअसल मोटे अनाज की पैदावार आसानी से हो जाती है। कम बारिश, पाले आदि का इसपर असर कम पड़ता है। इसलिए कम उपजाऊ भूमि पर भी इन अनाजों का उत्पादन आसानी से हो जाता है। मिलेट का उत्पादन बढ़ाने और इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए साल 2018 में सरकार ने मिलेट को एक पोषणकारी अनाज घोषित किया था। अब सरकार इसे मिशन के तौर पर आगे बढ़ा रही है।यूं ही नहीं कहते सुपर फूड
कहते हैं कि बंजर भूमि पर पैदा होने वाले ये मिलेट क्रॉप सुपर फूड है। इसमें पोषक तत्व बाकी अनाजों के मुकाबले अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होते हैं। खाने के साथ-साथ इसकी पैदावार भी बचत से भरी है। जहां गन्ने की फसल के लिए 2100 मिलीमीटर पानी की ज़रूरत होती है। वहीं ज्वार-बाजार जैसे मोटे अनाज को उगाने के लिए मात्र 350 मिलीमीटर पानी की जरूरत होती है। बाकी फसलों के मुकाबले मोटे अनाज को सिंचाई की कम जरूरत होती है। वहीं सूखने के बाद इन अनाजों के अवशेष जानवरों के चारे में इस्तेमाल हो जाते हैं।from https://ift.tt/fIgPmLv
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