नई दिल्ली: चुनाव इस शब्द से भारत की अधिकांश जनता वाकिफ है। देश में अलग-अलग लेवल पर कई चुनाव होते हैं। मुखिया, पार्षद, विधायक और सांसद का चुनाव। दिल्ली में भी एमसीडी चुनाव होने जा रहे हैं और इस बार का चुनाव थोड़ा अलग है। दिल्ली नगर निगम (MCD) अब एक है और इस बार 250 वार्ड पर चुनाव है। एमसीडी है क्या? पार्षद कैसे चुने जाते हैं और आखिर पार्षदों का रोल क्या है। दिल्ली में MLA भी हैं और पार्षद भी... दोनों के कार्यक्षेत्र और भूमिका किस प्रकार अलग है। एमसीडी और टाउनहॉल के बीच दिल्ली में क्या कनेक्शन है यह समझना जरूरी है। जिस तरीके से राजनीतिक दल एमसीडी पर कब्जा जमाना चाहते हैं उसी तरह पब्लिक के लिए भी यह जानना जरूरी है कि उनका रोल सिर्फ वोट डालने तक सीमित नहीं है। 64 साल पहले की बात है जिसे समझना जरूरी है एमसीडी की यात्रा 64 साल पहले दिल्ली चांदनी चौक स्थित ऐतिहासिक टाउनहॉल से शुरू होती है। तब दिल्ली के दिल में स्थित 150 साल से अधिक पुराना टाउन हॉल नगर निकाय की सत्ता का केंद्र हुआ करता था। एमसीडी की पहली मेयर स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ अली थीं। राजधानी दिल्ली के अधिकतर हिस्से पर एकीकृत एमसीडी का शासन था। एमसीडी का गठन संसद द्वारा पारित दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के तहत किया गया। जानकारी के मुताबिक भारत की आजादी के एक दशक बाद नीति निर्माता जब एमसीडी के बारे सोच रहे थे तो तो इसे 'बॉम्बे नगर निगम' की तर्ज पर गठित करने का फैसला लिया गया था। टाउन हॉल में पुराने आयुक्त के कार्यालय में लगे एक पुराने उत्तराधिकार बोर्ड के अनुसार, दिल्ली के पहले नगर आयुक्त, पीआर नायक ने भी 7 अप्रैल, 1958 को कार्यभार संभाला था और उनका कार्यकाल 15 दिसंबर, 1960 को समाप्त हो गया था। पार्षदों की संख्या और अब एक नगर निगम साल 1958 में एमसीडी में पार्षदों की संख्या 80 थी। इसके बाद यह बढ़कर 134 और 2007 में यह संख्या 272 तक पहुंच गई। साल 2011 में जब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित थीं तब नगर निगम को तीन हिस्सों उत्तरी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में विभाजित कर दिया गया। इस दौरान उत्तरी दिल्ली नगर निगम और दक्षिण दिल्ली नगर निगम में फिलहाल 104-104 वहीं पूर्वी दिल्ली दिल्ली में 64 वार्ड पर चुनाव हुए और तीनों ही जगह मेयर अलग- अलग चुने गए। करीब 11 साल बाद फिर दोबारा से एमसीडी को मोदी सरकार में एक कर दिया गया। इसके लिए जब विधेयक पारित किया उसमें इस बात का जिक्र था कि वार्ड की संख्या 250 से अधिक नहीं होगी। एमसीडी चुनाव के लिए अब तारीखों का ऐलान हो गया है और 250 सीटों पर 4 दिसंबर को चुनाव होगा। एमसीडी के पास कैसी जिम्मेदारी स्ट्रीट लाइट, प्राइमरी स्कूल, प्रॉपर्टी और प्रोफेशनल टैक्स कलेक्शन, टोल टैक्स कलेक्शन सिस्टम, शमशान और जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र, डिस्पेंसरीज, ड्रेनेज सिस्टम, बाजारों की देखरेख इसका जिम्मा एमसीडी के पास है। एमसीडी के जरिए कई ऐसे काम किए जाते हैं जो लंबे समय में सभी पार्टियों के वोट बैंक के लिए बेहद अहम होता है। सड़क निर्माण से लेकर स्कूल और टैक्स कलेक्शन आय का बड़ा स्रोत होता है। दिल्ली एमसीडी का बजट करीब 15 हजार करोड़ से ज्यादा का है। इस बड़े बजट के जरिए कई सारे विकास कार्यों को अंजाम दिया जाता है। ऐसे में इतने बड़े बजट वाले एमसीडी पर कब्जा करने की हसरत सभी दलों की रहती है। एमसीडी को दिल्ली सरकार से भी खर्चे के लिए बजट मिलता है। दिल्ली सरकार और नगर निगम के अधिकार अलग है लेकिन कई मिलते जुलते हैं। सड़क का निर्माण एमसीडी और दिल्ली सरकार दोनों ही करती है। एक ओर जहां 60 फीट से कम चौड़ी सड़का जिम्मा एमसीडी के पास तो वहीं इससे अधिक सड़क चौड़ी दिल्ली सरकार के पास। स्कूल दोनों के पास हैं प्राइमरी एमसीडी के पास तो वहीं हायर स्कूल का जिम्मा दिल्ली सरकार के पास है। एमसीडी के पास कई डिस्पेंसरी है तो वहीं बड़े हॉस्पिटल की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार के पास है। हाउस, लाइसेंस के लिए एक टैक्स अब दिल्ली नगर निगम का एक ही मुख्यालय होगा। तीन की बजाय नगर निगम का एक ही सदन होगा। एक ही मेयर, एक ही स्टैंडिंग कमिटी। इसके अलावा अब हाउस टैक्स, लाइसेंस आदि के लिए एक ही नीति होगी। अब तक तीनों निगम हाउस टैक्स जमा कराने की अंतिम तिथि भी अलग अलग ही तय करते थे लेकिन अब इस मामले में पूरी दिल्ली में एकरूपता होगी। अब तक दिक्कत ये थी कि तीनों निगमों की आमदनी एक जैसी नहीं थी। पहले दक्षिणी नगर निगम की आमदनी अच्छी थी जबकि बाकी दोनों निगमों की आमदनी कम थी। आमदनी में संतुलन न होने की वजह से भी दिक्कत थी। अब तीनों निगम एक होने से एक ही जगह आमदनी आएगी और तीन तीन निगम होने से जो अतिरिक्त खर्च हो रहा था, वह भी कम हो जाएगा। इससे निगम की वित्तीय स्थिति कुछ सुधरने की उम्मीद है।
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