पटना: अंततः लालू प्रसाद और जगदानन्द की दोस्ती का रंग फीका पड़ गया। राजनीति के इस सियासी खेल में राजद के लिए अब ज्यादा मुफीद अब्दुल बारी सिद्दीकी लगने लगे हैं, सो प्रदेश अध्यक्ष पद पर कौन के प्रश्न का समाधान बन कर एक नाम आया और प्रायः सभी अधिकारियों के वे पसंदीदा बन गए। दरअसल दोस्ती के निर्वहन की राह पर चलते ही जगदानंद सिंह ने लालू प्रसाद के उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, जिसमें लालू प्रसाद ने कठिन समय में प्रदेश की बागडोर संभालने को कहा था। इस खास घड़ी में लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव की तमाम गुस्ताखियों को नजरअंदाज करते जगदानंद सिंह ने राजद की नई चुनौती को स्वीकार कर प्रदेश अध्यक्ष बनने की स्वीकृति दे दी थी। लेकिन राजनीत का यू टर्न तब आया जब जगदानंद सिंह के पुत्र कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने तमाम राजनीतिक मर्यादाओं को ताक पर रख अपने विद्रोही तेवर से आपने ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। यही बात नीतीश और तेजस्वी की जोड़ी को चुभ गई। अब सिद्दीकी को कमान देने की तैयारी ये सियासी शोर शांत तब हुआ जब कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन एक पिता के लिए ये चुभने वाली बात थी। इसके बाद जगदानंद सिंह ने अनमने ढंग से प्रदेश अध्यक्ष पद को एक तरह से ना कर दिया। उन्हें एतबार था कि लालू प्रसाद उन्हें मना लेंगे। राजद सुप्रीमो ने उन्हें मनाया तो नहीं पर कार्यालय आने से भी रोका भी नहीं। दरअसल वर्तमान समय राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत ले कर आया है। जहां लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की राजनीत का पटाक्षेप होना है और तेजस्वी यादव के कार्यकाल का शुभारंभ होना है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष का पद ज्यादा दिन तक खाली नहीं रखा जा सकता। सामने लोकसभा का 2024 और 2025 का बिहार विधान सभा चुनाव भी दस्तक दे रहा है। ऐसे में तेजस्वी यादव को एक मजबूत संगठन की जरूरत है, जिसकी बागडोर एक अनुभवी नेता के हाथ में हो। इस आधार पर अब्दुल बारी सिद्दीकी एक आजमाया नाम है। सबसे पहले तो सिद्दीकी अनुभवी हैं । नीतीश कुमार की भी पसंद हैं और आजमाए हुए भी । ऐसा इसलिए कि राजद में जब बड़ी टूट हुई तो सिद्दीकी लालू प्रसाद के साथ ही रहे। मुस्लिम मतों के बिखराव को रोकनाराजद की आज सबसे बड़ी चुनौती है एम वाई समीकरण को अटूट रखना। इधर से मुस्लिम मतों में बिखराव भी राजद की परेशानी का कारण बन गया है। खास कर ओवैसी फैक्टर ने जिस तरह से नुकसान पहुंचाया है उसके उपाय का रास्ता भी सिद्दीकी से हो कर गुजरता है। सीमांचल एरिया में राजद को जो नुकसान हुआ वह अब बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी दस्तक देने लगा। हाल में ही गोपालगंज में 12 हजार मत एआईएमआईएम के खाते में जाना राजद उम्मीदवार की हार का कारण बना। कुढ़नी में भी ओवैसी ने उम्मीदवार खड़ा कर महागंठबंधन की मुश्किल बढ़ा दी है। सो,राजनीतिक गलियारों में सिद्दीकी को प्रदेश अध्यक्ष बनना वोट समीकरण की जरूरत का नतीजा है। सिंगापुर जाने के पहले होगा बदलाव सिंगापुर जाने से पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव नए प्रदेश अध्यक्ष को उनकी कुर्सी सौंपकर जाएंगे। इसके लिए लालू ने अब्दुल बारी सिद्दीकी का नाम फाइनल भी कर लिया है। कहा जा रहा है कि अब तो बस औपचारिक घोषणा भर होनी बाकी रह गई है।
from https://ift.tt/fyrW1Rm
0 comments: