वॉशिंगटन: हमारे सौर मंडल में मंगल एक ऐसा ग्रह है जो हमेशा से वैज्ञानिकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। वैज्ञानिक इस बात की खोज कर रहे हैं कि क्या इस ग्रह पर पहले कभी जीवन था या नहीं। अब इस खोज में वैज्ञानिक एक कदम और करीब पहुंच गए हैं। नई खोज के मुताबिक मंगल ग्रह पहले पृथ्वी की ही तरह नीला था और इस पर पानी भरा हुआ था। कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है। मंगल ग्रह पर कितना पानी था इस सवाल का सटीक जवाब अभी नहीं मिल सका है। लेकिन अध्ययन के मुताबिक 4.5 अरब साल पहले ग्रह पर इतना पानी था कि इसे 300 मीटर गहरे महासागर से डुबोया जा सके। सेंटर फॉर स्टार एंड प्लैनेट फॉर्मेशन के प्रोफेसर मार्टिन बिज़ारो का कहना है, 'यह एक ऐसा समय था जब बर्फ से भरे एस्टेरॉयड मंगल ग्रह पर लगातार गिर रहे थे। मंगल ग्रह के शुरुआती 10 करोड़ वर्ष में यह सब हुआ। एक दिलचस्प बात यह कि क्षुद्रग्रहों में जैविक अणु भी होते हैं, जो जीवन के लिए जैविक रूप से महत्वपूर्ण है।' बर्फीले एस्टेरॉयड से पहुंचा पानी इन बर्फीले क्षुद्रग्रहों ने न सिर्फ लाल ग्रह पर पानी पहुंचाया, बल्कि जैविक रूप से महत्वपूर्ण अमीनो एसिड जैसे यौगिक भी पहुंचाए। जब जीवन की कोशिओं को बनाने में DNA और RNA एक साथ मिलते हैं तो अमीनो एसिड जरूरी होते हैं। इस रिसर्च को जर्नल साइंड एडवांस में पब्लिश किया गया है। नए शोध के मुताबिक ग्रह के प्राचीन महासागर कम से कम 300 मीटर गहरे थे। कई जगहों पर वह एक किमी की गहराई पर भी रहे होंगे। मार्टिन बिज़ारो के मुताबिक मंगल की तुलना में पृथ्वी पर पानी की मात्रा बहुत कम है। कैसे हुई इसकी जानकारीसबसे बड़ा सवाल है कि मंगल पर पानी था इसकी रिसर्च हुई कैसे। मंगल पर पानी के बारे में अरबों साल पुराने एक उल्कापिंड की बदौलत रिसर्च हो सकी है। यह उल्कापिंड मंगल ग्रह के प्रारंभिक परत का एक टुकड़ा था। यह सौर मंडल के गठन के शुरुआती दिनों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता है। इस उल्कापिंड में सारा रहस्य छिपा है। एक उल्कापिंड की टक्कर से मंगल की सतह के कुछ हिस्से पृथ्वी तक पहुंच गए थे। शोधकर्ताओं ने ऐसे 31 पत्थरों का विश्लेषण किया है।
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