दोहा : कतर इस वक्त पूरी दुनिया की सुर्खियों में है। इसका एक कारण फीफा वर्ल्डकप है और दूसरा एक 'इस्लामिक देश का सबसे महंगे फुटबॉल वर्ल्ड कप' की मेजबानी करना। कतर एक मुस्लिम देश है जहां कड़े धार्मिक नियम लागू हैं। ऐसे में जब पूरी दुनिया से फुटबॉल फैंस कतर पहुंच रहे हैं तो ये रूढ़िवादी नियम चर्चा में हैं। इस बीच कतर यूनिवर्सिटी में इस्लामिक शिक्षा के प्रोफेसर डॉ. शफी अल-हजरी ने एक इंटरव्यू में कहा कि जो इस्लाम स्वीकार करने और जज़िया कर देने से इनकार करता है, उनके खिलाफ लड़ाई होनी चाहिए। प्रोफेसर ने कहा, 'लड़ाई दवाह की तीसरी स्टेज है। पहले हम लोगों को अल्लाह के पास बुलाते हैं। अगर वे स्वीकार करते हैं तो उन्हें उन्हीं कर्तव्यों और अधिकारों का पालन करना पड़ता है तो जिनका हम करते हैं। अगर वे इस्लाम स्वीकार करने से इनकार करते हैं तो उन्हें जज़िया कर देना पड़ता है। जज़िया कर भुगतान उन्हें दूसरों से सुरक्षा के लिए करना पड़ता है।' अल-हजरी ने कहा, 'अगर वे यह कर चुकाने से भी मना करते हैं तो तीसरी स्टेज में उनसे 'लड़ाई' होती है। उनसे लड़ाई जो दवाह को अस्वीकार कर देते हैं, जो इस्लाम में परिवर्तित होने से इनकार कर देते हैं या जज़िया कर देने से मना कर देते हैं।' क्या होता है दवाह और जज़िया कर? अल-हजरी की बातों को आसान भाषा में समझते हैं। इस्लाम में 'दवाह' का मतलब 'इस्लाम धर्म में परिवर्तित' होना है। वहीं 'जज़िया' एक तरह का धार्मिक कर होता है जिसे किसी मुस्लिम देश में रहने वाली गैर-मुस्लिम जनता से वसूला जाता है। मध्य कालीन इतिहास मुस्लिम शासकों ने इसे लागू किया था। उस समय इस्लामिक देश में सिर्फ मुसलमानों को रहने की अनुमति होती थी। अगर कोई गैर-मुस्लिम यहां रहना चाहता तो उसे जज़िया कर देना पड़ता था। विवादों में है कतर फीफा की शुरुआत के बाद कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया था कि इस्लाम का प्रचार प्रसार करने के लिए कतर ने विवादास्पद उपदेशक और भगोड़े जाकिर नाइक को बुलाया है। कहा जा रहा था कि उसे 'मिशन दवाह' के लिए आमंत्रित किया गया है। हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि कतर ने भारत को जानकारी दी है कि 'जाकिर नाइक को फीफा फुटबॉल विश्वकप 2022 में हिस्सा लेने के लिए कोई निमंत्रण नहीं दिया गया है।'
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