इस्लामाबाद: पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के बीच स्टाफ लेवल एग्रीमेंट (एसएलए) के लिए हुई वार्ता को दो महीने होने वाले हैं। नौ फरवरी को दोनों के बीच आखिरी बार वार्ता हुई थी। असफल वार्ता के बाद देश के वित्त मंत्री इशाक डार ने भरोसा दिलाया था कि इस दिशा में जल्द कोई अच्छी खबर सुनने को मिलेगी। लेकिन अभी तक कुछ नहीं हो सका है। अब वित्त राज्य मंत्री डॉक्टर आयशा गौस पाशा ने भी इस मसले पर टका सा जवाब दिया है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ वित्त मंत्री इशाक डार और अब डॉक्टर पाशा, सबका यही कहना है कि नौंवे रिव्यू पर समझौता इसलिए नहीं हो सका क्योंकि आईएमएफ को वित्तीय भरोसा नहीं मिल सका है। आईएमएफ की तरफ से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की तरफ से यह वित्तीय भरोसा चाहिए। डार की वजह से नहीं मिल रहा कर्ज! डॉक्टर पाशा के बयान के बाद से देश में बहस होने लगी है कि हर शर्त पूरी होने के बाद भी अभी तक कर्ज क्यों नहीं मिल पा रहा है। पाकिस्तान में दो ग्रुप्स में बहस हो रही है। एक ग्रुप पहले समूह का कहना है कि जब तक डार वित्त मंत्री हैं तब तक आईएमएफ को पाकिस्तान पर भरोसा नहीं हो पाएगा। ये सभी लोग डार के गलत आर्थिक निर्णय लेने के इतिहास का हवाला देते हैं। इनका मानना है कि डार फंड कार्यक्रम के शब्द और भावना से मुकर रहे हैं। इसी वजह से आईएमएफ, पाकिस्तान पर विश्वास नहीं कर पा रहा है।मुकर गए पाकिस्तान के मंत्री डार वित्त मंत्री डार डार ने पिछले साल अगस्त आईएमएफ के सांतवें और आंठवें समझौते पर साइन किए थे। इसके बाद वह इस समझौते और इसकी भावना से मुकर गए। समझौते का पत्र अक्टूबर 2022 से लेकर इस साल फरवरी तक अधूरा ही रहा। ऐसा इस वजह से हुआ क्योंकि डार ने न सिर्फ यूटिलिटी टैरिफ और पेट्रोलियम लेवी को सहमति के अनुसार अपग्रेड नहीं किया बल्कि निर्यातकों को 110 बिलियन रुपए की बिजली सब्सिडी भी दे दी। जिस समय वह यह सबकुछ कर रहे थे उस समय 33 मिलियन बाढ़ प्रभावित खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर थे।इसके अलावा डार ने स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (SBP) को जरूरी विदेशी मुद्रा के निवेश के रुपए को बढ़ाने के लिए बाजार हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर किया। इसके साथ ही उन्होंने आईएमएफ के समझौते को उल्लंघन किया। उनकी इस हरकत की वजह से एक ग्रे मार्केट बना जिसने बाजार पर एक नकरात्मक असर डाला। अफसोस की बात है कि फंड टीम के जाने के बाद फरवरी के मध्य में ग्रे मार्केट फिर से उभर आया, जिसने निस्संदेह भरोसे की कमी को बढ़ाया।क्षेत्रीय राजनीति को बताया वजह दूसरा समूह वह है जो इस स्थिति के लिए अंतरराष्ट्रीय राजनीति खासतौर पर बदलती क्षेत्रीय राजनीति को जिम्मेदार मानता है। उनका मानना है कि इस राजनीति की वजह से ही अब अमेरिका भी पाकिस्तान की मदद नहीं करना चाहता है। लंबे समय से सऊदी अरब, अमेरिका के खेमे में था। मगर 10 मार्च 2023 को अपने क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी ईरान के साथ संबंधों को फिर से शुरू करने की घोषणा की। इस साल दावोस में सऊदी अरब के वित्त मंत्री ने मदद करने वाली नीति में बदलाव के बारे में बताया। उन्होंने जो जानकारी दी उसके मुताबिक अब उनका देश बिना किसी शर्त के अनुदान और जमा राशि का विस्तार नहीं करेगा।नए नेतृत्व की मांग सऊदी अरब ने पाकिस्तान को साल 2014 में 1.5 बिलियन डॉलर का अनुदान दिया था। देश के विशेषज्ञ मानते हैं कि इस मदद को तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ ने गलत तरीके से प्रयोग किया। सऊदी अरब और उसके करीबी यूएई ने अभी तक आईएमएफ को पाकिस्तान के लिए मदद का कोई वादा नहीं किया है। पाकिस्तान के अर्थव्यवस्था के जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान को अब नए नेतृत्व की जरूतर है। उसे प्रमुख विदेशी पाकिस्तानी अर्थशास्त्रियों से सलाह लेनी चाहिए और तभी कुछ हो सकेगा।
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