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वॉशिंगटन: अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा अपने आर्टमिस मिशन के जरिए अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजने की तैयारी में है। इस मिशन के जरिए नासा का असली मकसद चंद्रमा की सतह पर अपनी दीर्घकालिक मौजूदगी बनाए रखना है। इस मकसद को वास्तविकता बनाए रखने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी ऑक्सीजन का निर्माण है। ऑक्सीजन का इस्तेमाल सांस लेने के अलावा ट्रांसपोर्टेशन के लिए प्रोपलैंट के रूप में भी किया जा सकता है। इससे चंद्रमा पर पहुंचने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को लंबे समय तक रहने और आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
जॉनसन स्पेस सेंटर के वैज्ञानिकों ने किया कमाल
इस बीच हाल में ही एक परीक्षण के दौरान ह्यूस्टन में नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर के वैज्ञानिकों ने सिमुलेटेड चंद्रमा की मिट्टी से सफलतापूर्वक ऑक्सीजन निकाली है। चंद्रमा की मिट्टी का अर्थ सतह को ढकने वाली सूक्ष्म सामग्री से है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब चंद्रमा की मिट्टी से ऑक्सीजन को एक निर्यात वातावरण में निकाला गया है। इस ऑक्सीजन की मात्रा इतनी है कि इससे चंद्रमा की सतह पर मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों की एक दिन की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है। इसके अलावा वहां मौजूद दूसरे संसाधनों के उपयोग में भी मदद कर सकता है। इसे इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन के नाम से जाना जाता है।15 फुट के चेंबर में बनाया चंद्रमा जैसा माहौल
नासा की कार्बोथर्मल रिडक्शन डिमॉन्स्ट्रेशन (सीएआरडी) टीम ने डर्टी थर्मल वैक्यूम चैंबर नाम के 15 फुट गोलाई वाले एक स्पेशल गोलाकार चेंबर का इस्तेमाल करके चंद्रमा पर पाए जाने वाली परिस्थितियों का निर्माण किया। इस डर्टी चैंबर कहा जाता है, क्योंकि इसके अंदर अशुद्ध नमूनों का परीक्षण किया जाता सकता है। इसके अंदर का वातावरण चंद्रमा के जैसे होता है। टीम ने सोलर एनर्जी कंसनट्रेटर से गर्मी को सिमुलेट करने के लिए हाई पावर लेजर का इस्तेमाल किया और नासा के कोलोराडो के सिएरा स्पेस कार्पोरेशन द्वारा विकसित कार्बोथर्मल रिएक्टर के भीतर चंद्रमा की मिट्टी को पिघलाया।कार्बोथर्मल रिएक्टर क्या होता है
कार्बोथर्मल रिएक्टर ऐसी जगह होती है जहां ऑक्सीजन को गर्म करने और निकालने की प्रक्रिया की जाती है। उच्च तापमान का उपयोग करके कार्बन मोनोऑक्साइड या डाइऑक्साइड का उत्पादन करके सौर पैनलों और स्टील जैसी वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए पृथ्वी पर दशकों से कार्बोथर्मल रिडक्शन का उपयोग किया जाता है। मिट्टी के गर्म होने के बाद, टीम ने मास स्पेक्ट्रोमीटर ऑब्जर्विंग लूनर ऑपरेशंस (MSolo) नामक उपकरण का उपयोग करके कार्बन मोनोऑक्साइड का पता लगाया।from https://ift.tt/wlvyMnA
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