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रीवाः प्रधानमंत्री सोमवार को कुछ घंटों के लिए मध्य प्रदेश आए। उन्होंने रीवा में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने कई विकास योजनाओं का भूमिपूजन और लोकार्पण किया। प्रधानमंत्री ने करीब 32 मिनट के अपने संबोधन में सबसे ज्यादा जोर गांवों के विकास पर दिया। उनके भाषण की हर दूसरी लाइन में गांव शब्द की चर्चा थी। यह केवल राजनीति नहीं, इसमें एमपी विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी की रणनीति भी छिपी है।आम तौर पर माना जाता है कि बीजेपी के वोटर शहरी इलाकों में हैं। शहरों में रहने वाला पढ़ा-लिखा और पेशेवर तबका बीजेपी का परंपरागत समर्थक माना जाता है। मध्य प्रदेश में भी कमोबेश ऐसे ही हालत हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे भी देखें तो बीजेपी को अधिकांश सीटें शहरी इलाकों में मिली थीं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस को ज्यादा सफलता मिली थी। गांवों पर जोर देकर बीजेपी अपने लिए नया वोट बैंक तैयार करने की रणनीति बना रही है। बीचे के 15 महीनों को छोड़ दें तो एमपी में बीते 20 साल से बीजेपी ही सत्ता में है। उसे एंटी-इनकंबेंसी का डर सता रहा है। सबसे ज्यादा डर शहरों में रहने वाले युवा वर्ग का वोट बैंक छिटकने का है। इसकी भरपाई के लिए पार्टी अब गांवों की ओर रुख कर रही है।शहरी इलाकों में बीजेपी के कमजोर होने के संकेत कुछ महीने पहले हुए निकाय चुनावों में भी देखने को मिले थे। बीजेपी को ग्वालियर, रीवा और कटनी जैसे अपने परंपरागत गढ़ों में भी हार का सामना करना पड़ा था। ग्राम पंचायतों के लिए हुए चुनावों में तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला करीब-करीब बराबरी का रहा था। तभी तो दोनों पार्टियां इसे अपनी-अपनी जीत बता रही थी।गांवों में अपने विस्तार की बीजेपी की रणनीति के लिए मध्य प्रदेश पार्टी की लैबोरेटरी हो सकती है। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली बीजेपी को पता है कि ग्रामीण इलाकों से कांग्रेस का सफाया किए बगैर यह सपना पूरा नहीं हो सकता। पार्टी इस साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में इस रणनीति को ट्रायल के रूप में आजमा सकती है। यदि यह कामयाब रहा तो 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में इसे पूरे देश में विस्तार दिया जा सकता है।
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