इस्लामाबाद: पिछले दिनों भारत में ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसके बाद पाकिस्तान में फिर से पड़ोसी की आर्थिक तरक्की पर चर्चा होने लगी है। फरवरी में कश्मीर में दुर्लभ लिथियम मिला था और अब आंध्र प्रदेश में लिथियम आधारित केमिकल मिला है। इन घटनाओं के बाद अब माना जा रहा है कि भारत को कई टेक्नोलॉजी और उपकरणों के लिए पश्चिमी देशों या फिर अमेरिका की तरफ देखने की जरूरत नहीं होगी। इस पूरी घटना पर अमेरिका की डेलावेयर यूनिवर्सिटी में इस्लामिक स्टडीज प्रोग्राम के फाउंडिंग डायरेक्टर प्रोफेसर मुक्तदर खान ने अपने ही अंदाज में पाकिस्तान को आईना दिखाया है। प्रोफेसर खान ने कहा है कि एक तरफ तो भारत में दुर्लभ चीजों की तलाश हो रही है तो वहीं पाकिस्तान आज भी ईशनिंदा जैसे कानून का पालन करने में लगा है। भारत पर मेहरबान खुदा प्रोफेसर खान ने एक यू-ट्यूब चैनल को दिए इंटरव्यू में पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून पर जमकर भड़ास निकाली है। प्रोफेसर खान ने कहा, 'इस समय तो खुदा भी भारत पर मेहरबान है। जो लिथियम पहले कश्मीर में मिला और अब वैसा ही आंध्र प्रदेश में मिला है, उसके बाद भारत को रक्षा उपकरण जैसे ड्रोन से लेकर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, मेडिकल उपकरण, लेटेस्ट टेक्नोलॉजी और कई दूसरी चीजों के लिए अमेरिका या फिर किसी और देश पर निर्भर होने की जरूरत नहीं।' उनका कहना था कि भारत जो पहले इन चीजों को निर्यात करता था अब वह अपने ही घर में बना सकता है। उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश में भी जो खनिज तत्व मिला है, वह भी काफी खास है। प्रोफेसर खान के मुताबिक इस तत्व के बाद आर्थिक तरक्की पर भारत की राह और आसान हो जाएगी। पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून इसके बाद उनसे पाकिस्तान में जारी ईशनिंदा कानून के बारे में पूछा गया। पाकिस्तान में ईश निंदा का कानून काफी सख्त है। इस पर प्रोफेसर खान ने कहा कि पाकिस्तान में जितनी भी बहस इस मामले पर हुईं और जितने भी फतवे जारी हुए, उनका अध्ययन किया। उन्होंने कहा कि कई लोग मानते हैं कि पाकिस्तान में इस कानून का गलत प्रयोग किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस कानून में अब बदलाव की जरूरत है। मुशर्रफ भी नहीं बदल सके कानून प्रोफसर खान ने बताया कि जिस समय परवेज मुशर्रफ देश में शासन कर रहे थे उस समय उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर इस मसले पर मुशर्रफ से बात की थी। मुशर्रफ ने कहा था कि दो चीजें हैं जिन्हें वह भी हाथ नहीं लगा सकते हैं। मुशर्रफ कहना था कि अगर ईशनिंदा या कश्मीर के मामले में कुछ भी करेंगे तो वह खुद भी मर जाएंगे। प्रोफसर खान ने कहा कि ईशनिंदा का कानून अंग्रेजों का बनाया कानून है। उन्होंने सन् 1919 की एक घटना का जिक्र किया। प्रोफेसर खान ने बताया कि एक अखबार में एक बेइज्जती करने वाला आर्टिकल लिखा था, जिसके बाद लेखक की हत्या हो गई थी। प्रोफेसर खान ने बताया कि इस कानून में भी सजा-ए-मौत का भी प्रावधान पाकिस्तान में लाया गया और इसे बहुत ही सख्त बना दिया गया। प्रोफेसर खान का कहना था कि जिस नाम से इस कानून को जाना जाता है, वह इस्लाम से जुड़ा है ही नहीं बल्कि उसका संबंध क्रिश्चियन धर्म से है। ईशनिंदा का इस्लाम से कोई वास्ता नहीं प्रोफेसर खान के शब्दों में, 'इस तरह का कोई नियम ही नहीं इस्लाम नहीं है। कुरान में भी ऐसी कोई बात नहीं है। जो लोग इस कानून का हवाला देते हैं, वो खुद इसे ठीक से फॉलो नहीं कर रहे हैं।' उनका कहना है कि जो लोग इस्लामिक निजाम वो मानते हैं कि जब तक यह कानून रहेगा, पाकिस्तान इस्लामिक देश रहेगा। प्रोफेसर खान के मुताबिक पाकिस्तान में कुछ लोग यह मानते हैं कि अगर इस कानून को बदल दिया जाए तो उनका देश इस्लामिक देश नहीं रहेगा। जबकि इस कानून का इस्लाम से कुछ लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि इसे इतने गलत तौर पर आगे बढ़ाया जा रहा है कि माफी भी गैरवाजिब मानी जाने लगती है।
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