Tuesday 28 March 2023

'बहुत कठिन है डगर 'सियासी' पनघट की', 2024 के लोकसभा चुनाव में होगी बिहार में सम्राट की सिस्टमैटिक प्लानिंग की अग्नि परीक्षा

पटना: बिहार में बीजेपी ने नेतृत्व परिवर्तन किया। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद पर युवा नेता की नियुक्ति की। बीजेपी में आने के बाद सम्राट चौधरी गोली की रफ्तार से आगे बढ़ते जा रहे हैं। हम आपको सम्राट के सामने आने वाले चैलेंज के बारे में विस्तार से बताएंगे। उससे पहले आपको बिहार के दो बड़े नेताओं की प्रतिक्रिया जान लेनी होगी। ये प्रतिक्रिया सम्राट की नियुक्ति की सूचना आने के बाद आई थी। पहली प्रतिक्रिया राबड़ी देवी की थी। दूसरी प्रतिक्रिया नीतीश के करीबी नेता और मंत्री अशोक चौधरी की थी। राबड़ी देवी ने कहा था कि लगता है कि बीजेपी का बनियों से मन भर गया है। अब महतो पर दांव लगा रही है। अशोक चौधरी ने कहा था कि नई जिम्मेदारी के लिए हम उन्हें बधाई देते हैं। लेकिन वह कितना सफल होंगे, यह 2024 के लोकसभा और 2025 के विधानसभा चुनावों में देखा जाएगा। बिहार धर्म के नाम पर विभाजित होने वाला राज्य नहीं है। अशोक चौधरी ने कहा था कि सीएम नीतीश कुमार की वजह से ही बीजेपी राज्य में अपना जनाधार फैलाने में कामयाब रही। राबड़ी और अशोक चौधरी के बयानों ने आगामी 2024 लोकसभा और 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर बहुत कुछ कह दिया।

सम्राट को बहुत मेहनत करनी होगी!

नीतीश के करीबी मंत्री अशोक चौधरी का इशारा बीजेपी के उस प्लान की ओर था जिसमें वो धार्मिक आधार पर वोटों को अपने पाले में करती है। चौधरी ने साफ किया कि बिहार में वो चलने वाला नहीं है। हालांकि, बीजेपी के युवा उत्साहित हैं। वे कहते हैं कि पार्टी ने एक युवा, ऊर्जावान और सक्षम नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। सम्राट के नेतृत्व से पार्टी को बहुत लाभ होगा। सियासी जानकार मानते हैं कि भगवा पगड़ी में दिखने वाले सम्राट चौधरी भले बीजेपी के अभी चहेते बन गये हैं। उनकी अग्निपरीक्षा 2024 में उनके सामने होगी। केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें बिहार की 40 सीटों पर कब्जा जमाने का लक्ष्य दिया है। ये लक्ष्य इतना आसान नहीं है। जानकार मानते हैं कि कुढ़नी में हार के बाद जेडीयू भी जमीनी स्तर पर उतर कर अपना काम कर रही है। उपेंद्र कुशवाहा अलग रास्ते पर चल रहे हैं। मौका आने पर कुशवाहा को यदि महागठबंधन की तरफ से सीएम पद का ऑफर मिलेगी, तो वे बीजेपी में न जाकर महागठबंधन में ही आएंगे। हालांकि ये सब बातें आगे पता चलेंगी। फिलहाल, सम्राट चौधरी को प्रदेश स्तर पर अंदर चलने वाली गुटबाजी का सामना करना पड़ेगा। जानकार मानते हैं कि बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता इस बार साइड कर दिये गये हैं। वे अंदर ही अंदर सम्राट के प्रदेश अध्यक्ष बनने से नाखुश हैं।

कहीं खुशी कहीं गम!

हालांकि, बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता सम्राट के प्रदेश अध्यक्ष बनने से खुश भी हैं। पूर्व डिप्टी सीएम और राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा कि चौधरी के नेतृत्व में पार्टी 2024 के लोकसभा और 2025 के राज्य विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत से जीतेगी। पूर्व उद्योग मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि चौधरी एक बड़े नेता हैं और हमें उम्मीद है कि आने वाले चुनावों में उनके नेतृत्व से बहुत कुछ हासिल होगा। पिछली राजग सरकार में पंचायती राज मंत्री के रूप में और अब विधान परिषद में विपक्ष के नेता के रूप में चौधरी का प्रदर्शन असाधारण रहा है। सम्राट के अध्यक्ष बनने पर मंगल पांडेय ने चौधरी को एक ऊर्जावान और सक्षम व्यक्ति बताते हुए उम्मीद जताई कि उनके नेतृत्व में पार्टी राज्य में नई ऊंचाई को छुएगी। बीजेपी एमएलसी और पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया सह प्रमुख संजय मयूख ने कहा कि चौधरी के नेतृत्व में पार्टी राज्य में शानदार प्रदर्शन करेगी। सियासी जानकारों के मुताबिक भले ये नेता राज्य के अंदर सम्राट के नेतृत्व में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन पार्टी के कई नेता दबी जुबान से ये भी कह रहे हैं कि सम्राट के अलावा भी बहुत सारे ऐसे योग्य नेता थे जिन्हें अध्यक्ष बनाया जा सकता था। सम्राट के अंदर अभी अनुभवों की कमी है।

जीत की राह इतनी आसान नहीं!

सम्राट के सामने बिहार के कुशवाहा और अति-पिछड़ा वोटों को साधने की चुनौती है। जानकार मानते हैं कि हाल में जेडीयू ने जो कमेटी का गठन किया। उसमें कुशवाहा समुदाय से आने वाले लोगों को तरजीह दी गई है। उस कमेटी के नाम का असर बीजेपी के फैसले पर पड़ा। बीजेपी ने जैसे को तैसा की तर्ज पर कुशवाहा समुदाय के युवा नेता सम्राट चौधरी को राज्य की कमान दे दी। जानकार बताते हैं कि बिहार की सत्ता पर काबिज होने के लिए अति-पिछड़ा वोटों और कुशवाहा वोटों पर काबिज होना जरूरी है। बीजेपी सम्राट के जरिये इन वोटों को अपने पाले में करने की कोशिश में जुट गई है। सवाल सबसे बड़ा है क्या ये इतना आसान है। आज भी नीतीश कुमार के कोर वोटर कुशवाहा बने हुए हैं। उपेंद्र भले नाराज होकर नुकसान पहुंचा दें फिर भी नीतीश के पाले से कुशवाहा एकदम से अलग नहीं होंगे। अति-पिछड़ा वोटों को लेकर राजद का वही हाल है। अति-पिछड़ा वोट राजद के पाले में हैं। वे इतनी जल्दी बीजेपी में शिफ्ट नहीं होंगे। अति-पिछड़ा जातियों में सबसे ज्यादा वोट यादवों के हैं। उसके बाद कुशवाहा आते हैं। यादव राजद को छोड़ेंगे नहीं। कुशवाहा वोट 7 से आठ फीसदी हैं। उसमें भी तीन हिस्सेदारी लग जाने से बीजेपी को कितना हासिल होगा?

सियासी पनघट की डगर कठिन है!

जानकारों की मानें, तो बीजेपी की प्लानिंग में उपेंद्र कुशवाहा भी शामिल हैं। बताया जा रहा है कि बीजेपी ने पहले उपेंद्र को वाई प्लस सुरक्षा दे दी। उपेंद्र मोदी की तारीफ कर चुके हैं। बीजेपी सम्राट और कुशवाहा के माध्यम से नीतीश के कोर वोटरों को अपने पाले में करेगी। नार्थ बिहार में कुशवाहा और मध्य बिहार के साथ दक्षिण बिहार में सम्राट चौधरी की अच्छी पकड़ है। ये लोग कुशवाहा वोट को टारगेट करेंगे और नीतीश को हानि पहुंचाएंगे। हालांकि जानकारों की मानें, तो सम्राट और कुशवाहा में अभी भी नीतीश कुमार वाली बात नहीं है। पहली बात तो ये कि यदि उपेंद्र कुशवाहा की बात वोटर सुनते, तो उन्हें दोबारा किसी यात्रा पर निकलने की जरूरत नहीं पड़ती। नीतीश के पक्ष में सालों से कुर्मी वोटर गोलबंद हैं। उन्हें नीतीश से दूर करने के लिए कड़ी मेहनत की जरूरत करनी पड़ सकती है। जानकार मानते हैं कि आप नीतीश की जो भी आलोचना करें लेकिन वोटरों के मन में ये बात है कि बिहार के लिए नीतीश ने बहुत कुछ किया और उनके मुख्यमंत्री रहते जंगलराज तो बिल्कुल नहीं आ सकता है। जानकार मानते हैं कि वोटरों को आज भी नीतीश पर विश्वास है। वे उनसे इतनी जल्दी अलग नहीं हो सकते हैं। हां, कुढ़नी में कुशवाहा उम्मीदवार का नहीं जीतना नीतीश के लिए बहुत बड़ा झटका था। पार्टी उससे अभी भी उबर नहीं पाई है। बीजेपी ने कुढ़नी परिणाम के बाद ही राज्य में कुशवाहा जाति से आने वाले किसी चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाह रही थी। सम्राट चौधरी के रूप में पार्टी को वो चेहरा मिल गया है। लेकिन सम्राट को बिहार में फतह हासिल करने के लिए सिस्टमैटिक प्लानिंग की जरूरत होगी।


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