पटना : अनंत सिंह दुख-सुख में साथ रह हथिन। बोलइला पर आव हथिन। बेटा के बियाह में भले न आवे हथिन, लेकिन बेटी के बियाह में जरूर आव हथिन। ये कहना है मोकामा विधानसभा के एक वोटर का। बिहार के मोकामा विधानसभा उपचुनाव में अनंत सिंह के बारे में पूछने पर स्थानीय लोग कहते हैं कि वो समय-समय पर मदद जरूर करते हैं। इस बार भी उन्हें जीत मिलेगी। कोई दूसरा टक्कर में नहीं है। वहीं दूसरी ओर गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र में स्थानीय लोगों में नाराजगी है। पूछने पर कहते हैं कि कौन जीतेगा उन्हें नहीं पता। हां, वे जीत हार की बात तब बताते, जब प्रत्याशी मुद्दे की बात करते। यहां कोई सहानुभूति वोट बटोर रहा है। कोई जाति की बात कर रहा है। किसी ने सरकारी कार्यालयों में जारी घुसखोरी की समस्या पर बात नहीं की। बाढ़ पर बात नहीं की। हम नहीं जानते हैं, कौन जीतेगा। हार-जीत के सबसे बड़े सवाल की समीक्षा गोपालगंज-मोकामा विधानसभा सीट से जुड़े स्थानीय वोटरों के मन में हार-जीत को लेकर क्या चल रहा है। ये तो आपने जान लिया। अब हम आपको बतातें हैं कि दोनों सीटों की रियल तस्वीर क्या है। मोकामा उपचुनाव के दौरान लगभग सभी क्षेत्रों का दौरा करने वाले कोलकाता बेस्ड एक वीडियो ब्लॉगर कहते हैं कि मोकामा सीट पर कोई क्लोज फाइट नहीं है। इस सीट से अनंत सिंह भारी मतों से विजयी होते दिख रहे हैं। वे कहते हैं कि जीत की मार्जिन भले आप कम कर सकते हैं। लेकिन जीत अनंत सिंह को ही मिलेगी। लोग उनके सिवा यहां किसी को जीतते हुए देखना पसंद नहीं करते हैं। हालांकि, कुछ मोदी समर्थकों ने इस बात से इनकार किया और कहा कि मोकामा सीट से भी बीजेपी को विजय दिलाकर हमलोग पीएम मोदी को मजबूत करेंगे। पीएम मोदी सभी फ्रंट पर बेहतर कर रहे हैं, इसलिए उनके साथ खड़े होने की जरूरत है। छोटे सरकार को मिलेगी जीतसियासी जानकार मानते हैं कि पिछले 17 सालों से मोकामा सीट अनंत सिंह के पास है। अनंत सिंह को कोई नहीं हरा पाया। इस बार तो जेडीयू का साथ है। इसलिए हारने का सवाल ही नहीं। जानकारों का कहना है कि गोपालगंज सीट बीजेपी और मोकामा सीट अनंत सिंह को मिलती दिख रही है। अनंत सिंह को महागठबंधन के 7 दलों का समर्थन प्राप्त है। मोकामा में बीजेपी पूरी तरह अकेली है। मोकामा के जातीय समीकरण अनंत सिंह के पक्ष में हैं, जबकि बीजेपी की उम्मीदवार सोनम सिंह उस समीकरण में कहीं नहीं टिकती हैं। महागठबंधन के कोर वोटर ओबीसी हैं। जो राजद के समर्थन में हैं। बाकी पर अनंत सिंह का अपना प्रभाव साफ दिखता है। मोकामा के स्थानीय पत्रकारों की मानें, तो इस क्षेत्र में जातिय समीकरण सबसे प्रमुख फैक्टर है। ऊपर से अनंत सिंह बाहुबली हैं। अनंत सिंह को सबका समर्थन!मोकामा विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख वोटरों में पासवान, यादव, कुर्सी और सवर्ण हैं। जीत का सेहरा भूमिहार वोटों से तय होता है। अनंत सिंह के पास वो पहले से है। जिसका परिणाम है कि 2005 के चुनाव से यहां लगातार अनंत सिंह ही जीतते हैं। चाहे किसी दल के सिंबल पर हों या फिर निर्दलीय। स्थानीय राजनीति को समझने वाले कहते हैं कि अनंत सिंह का दबदबा इस इलाके में कई दशक से चला आ रहा है। अनंत सिंह से पहले 90 के दशक में उनके बड़े भाई दिलीप सिंह इसी सीट से विधायक रहे। बड़े भाई जनता दल के टिकट पर कांग्रेस को हराते रहे। ये अलग बात है कि 2000 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार सूरजभान सिंह ने उन्हें हरा दिया। इधर, 2005 में लालू यादव सत्ता से बाहर हो गए। नीतीश कुमार सूबे के मुखिया बने। उसी दौर में अनंत सिंह विधायक बनकर बिहार विधानसभा पहुंचे। फिर क्या, उन्हें लोगों ने 'छोटे सरकार' की उपाधि दे दी। सभी जातियों का 'अनंत' समर्थनबीजेपी ने पहली बार एक बाहुबली की पत्नी को अनंत सिंह की पत्नी के खिलाफ मैदान में उतारा है। स्थानीय जानकार मानते हैं कि इस सीट के वोटर भले उन्हें कुछ वोट दे दें, लेकिन कोर वोटर महागठबंधन के साथ हैं। इस सीट पर राजपूत और हरिजन जाति के वोटर भी अनंत का समर्थन करते हैं। क्योंकि, अनंत सिंह उनके घर छोटे-मोटे उत्सव में भी पहुंच जाते हैं। अनंत सिंह को सवर्ण वोटरों का पहले से समर्थन हासिल है। इसलिए, तय मानकर चलिए कि मोकामा से अनंत सिंह जीत रहे हैं। 2010 में अनंत सिंह ने लोजपा को हराकर विजय हासिल की। 2020 में राजद के टिकट पर जेडीयू प्रत्याशी को हराया। कोर्ट से सजायाफ्ता होने के बाद भले ही उनके सक्रिय चुनाव की राजनीति का सफर थम गया हो, लेकिन जीत अनंत सिंह की पत्नी की सुनिश्चित है। वहीं, कुछ लोग कहते हैं कि बीजेपी की उम्मीदवार सोनम देवी भी भूमिहार ही हैं। उनके पति भी बाहुबली है, लेकिन मोकामा से छोटे सरकार की सत्ता को हिला पाना मुश्किल है। बीजेपी की स्थिति काफी अच्छीउधर, सियासी जानकारों की मानें, तो गोपालगंज में बीजेपी की स्थिति अच्छी है। तेजस्वी के मामा साधु यादव और मामी इंदिरा यादव ने महागठबंधन के वोटों में सेंध लगा दी है। इस बीच से बीजेपी का निकलना आसान है। हालांकि, ये भी कयास लगाये जा रहे हैं कि पिछली बार के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे साधु यादव कहीं इस बार बाजी ना मार ले जाएं। एमवाई के पूरे समीकरण में साधु यादव और ओवैसी के उम्मीदवार ने सेंघ लगा दी है। महागठबंधन को मिलने वाले वोट बंट गए हैं। राजद उम्मीदवार मोहन प्रसाद गुप्ता के वैश्य होने का थोड़ा बहुत फायदा भले राजद उम्मीदवार को मिला हो, लेकिन पूरा फायदा नहीं हुआ है। बीजेपी गोपालगंज सीट को लेकर आश्वस्त दिखती है। जिसका पूरा श्रेय साधु यादव और ओवैसी की पार्टी को जाता है। बीजेपी की उम्मीदवार कुसुम देवी को अपने पति के निधन के बाद सहानुभूति वोट भी मिलेंगे ही। इस प्रकार गोपालगंज में बीजेपी अपना सीट बचाते हुए दिख रही है। ओवैसी ने बिगाड़ा खेल !स्थानीय पत्रकारों के आंकलन पर गौर करें, तो ओवैसी यानि AIMIM के उम्मीदवार के मैदान में आने के बाद महागठबंधन की स्थिति पूरी तरह खराब हो गई है। गोपालगंज में मुस्लिम और यादव वोटरों की संख्या अच्छी खासी है। ये दोनों बंट गए हैं। बचे वैश्य वोट, तो वे बीजेपी के साथ जाएंगे और कुछ महागठबंधन के साथ। ओवैसी के उम्मीदवार अब्दुल सलाम ने पहले ही तेजस्वी के समीकरण को बिगाड़ दिया है। रही सही कसर मामी इंदिरा यादव ले डूबी हैं। इसलिए, महागठबंधन के जीत की बात करना बेमानी है। उधर, बीजेपी ने गोपालगंज में मोकामा की अपेक्षा ज्यादा अक्रामक कैंपेन किया। राजद के उम्मीदवार को सबूतों के साथ शराब माफिया बता दिया। यहां तक की पार्टी हाईकोर्ट पहुंच गई। अंतिम समय में राजद के उम्मीदवार की फजीहत हो गई। रही सही कसर सुशील मोदी ने ये कहकर पूरा कर दिया कि खजूरबनी जहरीली शराब कांड में राजद उम्मीदवार का हाथ है। स्थानीय पत्रकार मानकर चल रहे हैं कि बीजेपी गोपालगंज में अपनी जीत दोहरा रही है। कुसुम देवी की जीत पक्की !गोपालगंज के पिछले चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें, तो 2005 में सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा। 2015 के चुनाव में जीत-हार के बीच 5 हजार वोटों का फर्क रहा। स्व. सुभाष सिंह को तब 78 हजार वोट मिले। राजद उम्मीदवार को 73 हजार। 2020 में ये फासला बड़ा रहा। स्व. सुभाष सिंह को दोबारा 78 हजार वोट मिले। वहीं साधु यादव को 41 हजार और महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर उतरे आसिफ गफूर को मात्र 36 हजार वोट मिल पाए। वोटों का ये आंकड़ा पूरी तरह बीजेपी के पक्ष में दिख रहा है। कुछ मिलाकर बीजेपी की स्थिति मजबूत बनी हुई है। इस बार ओवैसी और साधु यादव मिलकर महागठबंधन का वोट तोड़ देंगे। अंततः कुसुम देवी की जीत का रास्ता साफ हो जाएगा।
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