Thursday 3 November 2022

दुनिया में छिड़ने वाली है परमाणु जंग? पहले क्यूबा संकट, अब यूक्रेन पर रूसी हमले से सबसे बड़ा खतरा

मॉस्‍को: रूस और यूक्रेन युद्ध के आठ महीने हो चुके हैं। जो हालात अब बन रहे हैं वो विदेश मामलों के जानकारों को उस दौर की याद दिला रहे हैं जब दुनिया पर एक बड़ा संकट बढ़ गया था। उनका कहना है कि सन् 1962 के बाद एक बार फिर दुनिया खतरे में है। उस समय भी एक संघर्ष लगातार गहराता जा रहा था और 58 साल के बाद उसी संकट की याद विशेषज्ञों को सताने लगी है। उस समय भी अमेरिका को सोवियत संघ के बारे में एक ऐसे सच का पता लगा था जिसने उसकी नीदें उड़ा दी थी। क्‍या थी वह घटना अक्‍टूबर 1962 में जब जॉन एफ कैनेडी, अमेरिका के राष्‍ट्रपति थे तो उनके प्रशासन को यह बात पता लगी थी कि सोवियत संघ ने चुपचाप क्‍यूबा की तरफ मिसाइलें तैनात कर दी हैं। उन्‍होंने सोवियत संघ के इस कदम को जानबूझकर उठाया गया कदम बताया था। कैनेडी का मानना था कि सोवियत संघ का यह कदम भड़काने वाले था और वह यथास्थिति में बदलाव करना चाहता है जिसे अमेरिका कभी स्‍वीकार नहीं कर सकता है। कैनेडी ने क्‍यूबा की तटीय सीमा पर नौसेना तैनात करने का आदेश और सारी सीमाओं को ब्‍लॉक कर दिया गया। राष्‍ट्रपति ने उठाया कदम इसके बाद सोवियत संघ का कोई भी जहाज सीमा में दाखिल नहीं हो सकता था। कैनेडी ने राष्‍ट्रीय सुरक्षा परिषद की एक एग्जिक्‍यूटिव कमेटी की नियुक्ति की जो उन्‍हें संभावित प्रतिक्रियाओं पर सलाह देने का काम करती थी। कई पूर्व कमांडरों ने कैनेडी को सलाह दी कि वह क्‍यूबा को निशाना बनाने वाली सोवियत मिसाइलों पर एयर स्‍ट्राइक करें। लेकिन कैनेडी ने इसकी जगह तटीय सीमाओं को ब्‍लॉक करने का मन बनाया। यह फैसला इसी कमेटी की तरफ से दी गई सलाह पर आधारित था। दोनों देशों ने दिखाई समझदारी जिस समय यह सब हो रहा था कैनेडी ने अपने भाई रॉबर्ट कैनेडी के जरिये सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रुश्चेव के साथ पर्दे के पीछे कूटनीतिक प्रयास जारी रखे थे। रॉबर्ट कैनेडी ने उस समय सोवियत संघ के राजदूत से कहा था, 'अगर राष्‍ट्रपति युद्ध नहीं भी चाहते हैं और न ही ऐसी कोई इच्‍छा रखते हैं तो भी उनकी मंशा के विपरीत ऐसा कुछ हो सकता है जिसे बदला नहीं जा सकेगा। अगर यही स्थितियां आगे भी रहीं तो फिर तय नहीं है कि राष्‍ट्रपति को भी नहीं मालूम कि सेना उन्‍हें नहीं उखाड़ फेकेगी और सत्‍ता पर कब्‍जा नहीं करेगी।' निकिता ख्रुश्चेव ने इस संदेश का जवाब दिया और उन्‍होंने माना कि अमेरिका को उनकी मदद चाहिए। इसके बाद दोनों देशों ने अपने कदम पीछे खींच लिये जो कि परमाणु युद्ध के मुहाने तक आ गए थे। के पहले भी कई देशों के बीच गंभीर आपसी संघर्ष हुए हैं। लेकिन यह एक ऐसा संकट था जहां पर दो परमाणु शक्तियां आपस में टकराने को तैयार थीं और ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। खतरनाक हुआ यूक्रेन युद्ध अब यूक्रेन संकट में फिर से वही हालात हैं। आठ महीने बाद भी स्थिति तनावपूर्ण और संघर्षपूर्ण बनी हुई है। क्‍यूबा मिसाइल संकट और यूक्रेन युद्ध के बीच कई समानताएं हैं। ख्रुश्चेव ने उस समय चुपचाप परमाणु हथियार क्‍यूबा की तरफ तैनात कर दिए थे। सन् 1961 में बे ऑफ पिग्स द्वीप पर हमला हुआ था जहां पर फिदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा की कमान ने सन् 1959 में अमेरिकी समर्थक तानाशाही को उखाड़ फेंका था। इसके बाद सोवियत संघ ने दावा किया था कि मिसाइलों को रक्षात्‍मक मकसद से तैनात किया गया था। अमेरिका को मिसाइल तैनाती की खबर उस द्वीप पर मिली थी जो फ्लोरिडा से 145 किलोमीटर दूर था और यह एक बड़ा खतरा था। अमेरिका अपनी सीमा में किसी भी तरह की चुनौती बर्दाश्‍त नहीं कर सकता था। रूस ने यूक्रेन पर हमला इसलिए किया क्‍योंकि वह नाटो का विस्‍तार नहीं चाहता था। बाइडन का बड़ा बयान यूक्रेन युद्ध का वर्तमान दौर वह उदाहरण है जो अंतरराष्‍ट्रीय संबंधों के बारे में बताता है। यह एक ऐसा युद्ध है जहां पर हर देश किसी न किसी तरह से दूसरे पर दबाव बनाने की कोशिशों में लगा है जिसके बाद इसमें तेजी आ रही है। भले ही परमाणु युद्ध न चाहते हो लेकिन इस तरह से संघर्ष जारी रहना खतरनाक हो सकता है। अभी तक पर्दे के पीछे किसी भी तरह का कोई राजनयिक प्रयास भी नहीं शुरू हुआ है और यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है। खुद अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडेन भी कह चुके हैं कि सन् 1962 के बाद से परमाणु युद्ध की आशंका अब काफी बढ़ गई है।


from https://ift.tt/39MmsKH

0 comments: