अहमदाबाद: गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। तारीखों का ऐलान एक, दो दिन में कभी भी हो सकता है। इस बीच देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज गुजरात और मध्य प्रदेश की सीमा से सटे राजस्थान के जिला बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम पहुंचे जहां उन्होंने वर्ष 1913 में ब्रिटिश सेना की गोलीबारी में जान गंवाने वाले आदिवासियों को श्रद्धांजलि दी और एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया। साथ ही उन्होंने धाम राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया। पीएम मोदी के साथ दौरे पर राजस्थान, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और शिवराज सिंह चौहान मौजूद रहे। ऐसे में अब सवाल उठ रहा कि गुजरात चुनाव से ठीक पहले पीएम मोदी के इस दौरे के राजनीतिक मायने क्या हैं? पीएम की जनसभा में हजारों पहुंचे जिसमें मध्य प्रदेश के आदिवासियों की भी संख्या रही। तो क्या गुजरात के साथ-साथ 2023 में राजस्थान और मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों पर पीएम मोदी की नजर अभी से है? जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि समाज के हर तबके में समभाव पैदा हो इसलिए गोविंद गुरु जी ने संप सभा बनाई। उनके आदर्श आज भी एकजुटता, प्रेम और भाईचारे की प्रेरणा दे रहे हैं। उनके अनुयायी आज भी भारत की आध्यात्मिकता को आगे बढ़ा रहे हैं। 17 नवंबर 1913 को मानगढ़ में जो नरसंहार हुआ वो अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता की पराकाष्ठा थी। एक ओर आजादी में निष्ठा रखने वाले भोले-भाले आदिवासी भाई-बहन तो दूसरी ओर दुनिया को गुलाम बनाने की सोच। मानगढ़ की इस पहाड़ी पर अंग्रेजी हुकूमत ने डेढ़ हजार से ज्यादा युवाओं, बुजुर्गों, महिलाओं को घेरकर मौत के घाट उतार दिया। एक साथ डेढ़ हजार से ज्यादा लोगों की जघन्य हत्या करने का पाप किया। दुर्भाग्य से आदिवासी समाज के इस संघर्ष और बलिदान को आजादी के बाद लिखे गए इतिहास में जो जगह मिलनी चाहिए थी नहीं मिली। मानगढ़ का राजनीतिक मायने क्या है?बांसवाड़ा जिले का मानगढ़ धाम आदिवासियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। बताया जाता है कि वर्ष 1913 में यहां 1,500 आदिवासी-भीलों का नरसंहार हुआ था। बांसवाड़ा जिला मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान के बॉर्डर पर है। पीएम मोदी ने तीनों राज्यों की 99 विधानसभा सीटों पर निशाना साधा है। मध्य प्रदेश में विधानसभा की 47 तो वहीं 6 लोकसभा सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। वहीं, राजस्थान में 25 और गुजरात में 27 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। जबकि 80 से ज्यादा सीटों पर इनका प्रभाव है। गुजरात और मध्य प्रदेश के आदिवासियों को साधने के लिए बीजेपी काफी समय से कोशिश कर रही है। गुजरात में आदिवासी वोट की अहमियत काफी है। खबरों की मानें तो राज्य में कुल 14.7 फीसदी आदिवासी वोटर्स हैं जो किसी भी राजनीतिक पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। बात अगर दूसरे राज्यों की करें तो मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 में बीजेपी ने आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 में से 16 सीटें जीती थीं कांग्रेस के खाते में 30 सीटें आई थीं। इससे पहले 2013 के चुनाव बीजेपी ने 31 सीटों पर कब्जा जमाया था। राजस्थान में ऐसी 24 सीटें हैं जिसमें से 2018 विधानसभा में बीजेपी ने नौ सीटें जीती थीं। गौरव यात्रा में आदिवासी वोटों पर नजर के लिए सत्ताधारी पार्टी बीजेपी राज्य में गौरव यात्रा निकाल रही है। सबसे लंबी गौरव यात्रा उनई से अंबाजी तक निकाली जाएगी जो तकरीबन 490 किमी की दूरी तय करेगी। इस रूट पर सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी के प्रभाव वाली विधानसभा सीटें पड़ती हैं। इसके अलावा उनई से फगवेल रूट भी आदिवासी बेल्ट के लिए जाना जाता है। भाजपा किसी भी तरह से आदिवासी वोट बैंक को अपने पाले में खींचने की कोशिश कर रही है क्योंकि पिछले विधानसभी चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन आदिवासी बाहुल क्षेत्रों ठीक नहीं था। पिछले चुनाव में भी एसटी आरक्षित 27 सीटों में से भाजपा महज 9 पर जीत हासिल कर सकी थी। दो पर भारतीय ट्राइबल पार्टी और बाकी की सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। हाल ही में गुजरात के तीन दिवसीय दौरे के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने भरुच जिले में 8200 करोड़ रुपए की योजनाओं की सौगात गुजरात को दी थी, इसमें आदिवासियों के लिए 4 ट्राइबल पार्क का भी तोहफा था। वर्ष 1995 में सरकार बनने के बाद 2017 के चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन सबसे खराब था। इस चुनाव में पार्टी 99 सीटें ही जीत पाई थी। अब होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा 150 सीटों का टारगेट लेकर चल रही है। ऐसे में पार्टी को पता है कि बिना आदिवासियों के वोटों के ये संभव नहीं हो पायेगा। कांग्रेस का इन सीटों पर प्रदर्शन पिछली बार काफी अच्छा रहा था।
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