Wednesday, 12 October 2022

माता-पिता सड़क पर दिहाड़ी मजदूर, खून-पसीना से सींचा तब बिटिया बनी भारत की कप्तान, रुला देगी ये कहानी

नई दिल्ली: आईपीएल ऑक्शन की पहली बोली ही 10 लाख रुपये से शुरू होती है। पल दो पल में करोड़ों का वारा-न्यारा हो जाता है। साइकिल से चलने वाला खिलाड़ी लैंबॉर्गिनी से फर्राटा भरने का सपना देखने लगता है। फैमिली के दिन बदल जाते हैं तो दूसरे खेलों का हाल इतना लग्जरी नहीं है। फीफा महिला अंडर-17 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम की अगुवाई कर रही अष्टम उरांव को ही ले लीजिए। झारखंड के एक छोटे से गांव से निकली भारत की शान के घर वाले दो जून की रोटी के लिए आज भी संघर्ष कर रहे हैं। गरीबी ऐसी कि टीवी सेट भी नहीं था घरछोटे पैरों से दुनिया नापने का सपना आंखों सजाए अष्टम उरांव फिलहाल भुवनेश्वर में भारत के सम्मान के लिए मोर्चा ले रही हैं। गरीबी का आलम यह है कि बिटिया कैसा खेल रही है यह देखने के लिए घर पर एक अदद टीवी नहीं थी। आनन-फानन में सरकार ने टीवी और इन्वर्टर उरांव के घर पहुंचाई। टीवी सेट थामते हुए मां को गर्व का अहसास तो था, लेकिन चेहरे का भाव नहीं बदला था। उन्हें पता है कि जिंदगी सिर्फ टीवी तक सीमित नहीं है। उन्हें अगले ही दिन फिर उसी ढर्रे पर चलना है। दिहाड़ी मजदूरी करनी है और पेट भर सके इसके लिए जंग लड़ना है। 250 रुपये की दिहाड़ी से बेटी को बनाया भारत का कप्तानबेटी को मैदान तक पहुंचाने के लिए मां तारा देवी और पिता हीरालाल खून जलाते आ रहे हैं। वह तब भी सड़क बनाने के लिए दिहाड़ी मजबूर के रूप में काम कर रहे थे, जब दुनिया उनकी बेटी की चर्चा कर रही थी। प्रतिदिन 250 रुपये मिलने वाले पैसे से उनका पेट पलता है। ये वही पैसे हैं, जिसने न केवल पेट भरे, बल्कि बेटी को भारत का कप्तान बनाया। 8-10 घंटा की दिहाड़ी में हजारों खांची (रेत, ईंट उठाने का पात्र) सिर पर ढोने के बाद मिले शायद ही पूरी फैमिली के लिए काफी हो। बेटी के सम्मान में बन रहा सड़क, मां-पिता कर रहे थे मजदूरीसंघर्ष की इंतहा देखिए कि जब बेटी भारतीय टीम की कप्तान चुनी गई तो सरकार ने उनके सम्मान में गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड गांव में सड़क बनाने का फैसला किया। यह जानकार हैरानी होगी कि बेटी के सम्मान में बन रही सड़क पर मां और पिता 250-250 रुपये में दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं। इस बारे में वह कहते हैं- मजदूरी नहीं करेंगे तो पेट कैसे पलेगा। जब यह बात सामने आई तो झारखंड का प्रशासन दंग रह गया। पानी भारत और बोथा साग खिलाकर बना दिया चैंपियन फुटबॉलरपहले तो प्रशासन ने आनन-फानन में टीवी और इन्वर्टर भिजवाए। हैरत की बात यह है कि बिटिया के नाम से बन रही सड़क पर माता-पिता मजदूरी कर रहे थे इस बात से प्रशासन अंजान था। अब कहा जा रहा है कि उनके गांव के पास ही स्टेडियम का निर्माण भी किया जाएगा और रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए जाएंगे। मां ने एक इंटरव्यू में बताया कि बेटी को पानी भात और बोथा साग बनाकर चैंपियन खिलाड़ी बनाया। कहती हैं जब बेटी पैसे कमाएगी तो मजदूरी छोड़ देंगी। पिता भी खेलते थे फुटबॉलअष्टम की एक अन्य बहन एथलीट है तो दूसरी फुटबॉलर। पिता भी फुटबॉल खेलते थे, लेकिन आर्थिक और पारिवारिक दिक्कतों की वजह से उनका सपना चकनाचूर हो गया है। अब बेटी से वह खुद का सपना पूरा होते देख रहे हैं। खैर, देश के लिए अच्छी बात यह है कि एथलेटिक्स के लिए स्वर्ग माने जाने वाले बिरसा मुंडा के प्रदेश से जूनियर फुटबॉल टीम में 6 खिलाड़ी खेल रही हैं और सभी भविष्य का स्टार हैं।


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