ब्रजेन्द्र नाथ सिंह, नई दिल्ली: गुजरात में विधानसभा की एक सीट का ऐसा संयोग रहा है कि उसे जीतने वाली पार्टी ही प्रदेश में सरकार बनाती है। वर्ष 1960 में राज्य के गठन के बाद अब तक हुए सभी 13 विधानसभा चुनावों में महज एक ही अपवाद है, जब वलसाड विधानसभा सीट पर जीत दर्ज करने वाली पार्टी की राज्य में सरकार नहीं बनी। शेष सभी अवसरों पर यहां से जीत दर्ज करने वाली पार्टी ने ही गुजरात की सत्ता पर राज किया है। पहले बुल्सार का सीट का नाम गुजरात में पहली बार 1962 में विधानसभा चुनाव कराए गए थे। तब से लेकर 1975 तक गुजरात की सत्ता पर कांग्रेस का एकछत्र राज रहा। वर्ष 1975 का विधानसभा चुनाव पहला मौका था जब कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में तो उभरी लेकिन वह बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई। साल 1975 के बाद हुए सभी चुनावों में यहां से जीत दर्ज करने वाली पार्टी की ही राज्य में सरकार बनी। वर्ष 1980 और 1985 के विधानसभा चुनावों में यहां से कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। इसके बाद हुए 1990, 1995, 1998, 2002, 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में यह सिलसिला जारी रहा। क्या 2022 में बना रहेगा संयोग? पिछले दो विधानसभा चुनावों से वलसाड से भाजपा नेता भरत पटेल जीत दर्ज करते आ रहे हैं। वलसाड से जुड़े इस इत्तेफाक के बारे में जब उनसे बात की गई तो उन्होंने कहा कि यह वलसाड की परंपरा रही है कि वह ऐसी पार्टी को जिताती है, जो सरकार बनाती है। उन्होंने दावा किया कि इस विधानसभा सीट के तमाम समीकरण उनके पक्ष में हैं और वह आगामी विधानसभा चुनाव में इसे फिर से जीतकर पार्टी की झोली में डालेंगे और सरकार बनाने की इस परंपरा को आगे बढ़ाएंगे। वलसाड सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। इससे पहले, इस सीट का नाम बुल्सार था। तब 'सिंडिकेट कांग्रेस' जीती वलसाड में अब तक हुए विधानसभा चुनावों में सिर्फ 1972 का चुनाव ऐसा रहा, जब वहां से जीत दर्ज करने वाली पार्टी की राज्य में सरकार नहीं बनी। हालांकि एक तथ्य यह भी है इस चुनाव में 140 सीट जीतने वाली कांग्रेस ने सरकार तो बनाई लेकिन अंदरूनी मतभेदों के चलते वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और राज्य में कुछ समय तक राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा। इस चुनाव में वलसाड में सिंडिकेट कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाले केशव भाई पटेल की जीत हुई। उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार गोविंद देसाई को 6,908 मतों से पराजित किया। दो बार बनी त्रिशुंक स्थिति गुजरात के विधानसभा चुनावों के इतिहास में सिर्फ दो ही बार त्रिशंकु विधानसभा बनी है। पहली बार 1975 के चुनाव में और दूसरी बार 1990 के चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल गठबंधन की सरकार बनी। कांग्रेस को 1975 के चुनाव में 75 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि कांग्रेस से टूटकर बनी इंडियन नेशनल कांग्रेस (ओ) को 56 सीटों पर सफलता मिली थी। आईएनसी (ओ) को अनौपचारिक रूप से ‘सिंडिकेट कांग्रेस’ भी कहा जाता था। बाबूभाई पटेल बने थे सीएम भाजपा के पूर्ववर्ती स्वरूप भारतीय जनसंघ (बीजेएस) को इस चुनाव में 18 सीटों पर जीत मिली। सिंडिकेट कांग्रेस और बीजेएस को मिलाकर 74 सीट हो रही थी, इसके बावजूद वह बहुमत से 17 सीट दूर थी। राज्य में विधानसभा की कुल 182 सीट थी और सरकार बनाने के लिए किसी भी दल या गठबंधन को 91 से अधिक सीट चाहिए थी। इस चुनाव में कांग्रेस से अलग होकर पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल ने किसान मजदूर लोक पक्ष (केएमएलपी) नाम से राजनीतिक दल का गठन किया और उसने 131 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इसके उम्मीदवारों ने 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस सूरत में सरकार गठन की चाबी चिमनभाई के पास थी। बाद में सिंडिकेट कांग्रेस, बीजेएस, केएमएलपी और अन्य के समर्थन से राज्य में जनता मोर्चा की सरकार बनी और बाबूभाई पटेल मुख्यमंत्री बने।
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