Wednesday, 5 October 2022

यूपी का वह गांव जहां रावण को मानते हैं देवता, दशहरे पर नहीं जलाते पुतला, पूरी कहानी जानिए

बागपत: देश भर में आज दशहरा (Dussehra) यानी विजयदशमी (Vijayadashami) पर रावण का दहन (Ravan Dahan) किया जाएगा। हालांकि उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में रावण का दहन नहीं किया जाएगा, बल्कि कुछ जगहों पर रावण की पूजा की होगी। इसके पीछे अलग-अलग जगहों पर कई कहानियां है। जैसे कि यूपी के बागपत का बड़ागांव गांव, जिसे आज भी राजस्व रिकॉर्ड में 'रावण' कहा जाता है। यहां ना तो रावण का पुतला दहन होता है, ना ही दशहरा मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि हिमालय में शक्ति (शक्ति) प्राप्त करने के बाद रावण ने उसे एक किसान को सौंप दिया था, लेकिन किसान ने इसी गांव में शक्तियों को खो दिया था। पुरातात्विक खोज खोज में भी इस गांव का संबंध उत्तर वैदिक काल से जुड़ा हुआ है। बागपत गांव के एक मंदिर के मुख्य पुजारी गौरी शंकर ने बताया कि हमारा एक प्राचीन गांव है। इसे हमेशा रावण कहा जाता है। पीढ़ियों से हम राक्षस राजा से जुड़ी एक आम कथा सुन रहे हैं। रावण ने हिमालय में वर्षों तक शक्तियों के लिए तप (ध्यान) किया ध्यान किया था। शक्तियों मिलने के बाद पहाड़ों से लौटते समय वह इस गांव से गुजरा, तब रावण ने किसी वजह से शक्ति एक किसान को सौंप दी। लेकिन किसान शक्ति का भार सहन करने में असमर्थ था, उसने शक्तियों को जमीन पर रख दिया। तब 'शक्ति' ने रावण के साथ आगे जाने से इनकार कर दिया। इसलिए, उसने मनसा देवी के लिए उसी स्थान पर एक मंदिर बनाया, जहां वह आज है।

रावण के इस गांव से जुड़े पुरातात्विक सबूत मिले

मुल्तानी मल पीजी कॉलेज इतिहास विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ केके शर्मा ने बताया कि ये गांव बहुत पहले बसा था। इस गांव में किए गए पुरातात्विक मिशनों में चित्रित ग्रेवेयर मिट्टी के बर्तन मिले, जो 1,500 ईसा पूर्व अस्तित्व में थे। इसलिए कह सकते हैं कि गांव उससे बहुत पहले अस्तित्व में था। संयोग से, पश्चिमी यूपी ने महाभारत और रामायण दोनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह भी इतना अधिक है कि कई शहरों के नाम वही हैं, जो दो महाकाव्यों में लिखे हुए हैं। पूरा देश जब बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा मनाता है, तब इस क्षेत्र के कई गांव और समुदाय रावण वध का जश्न नहीं मनाते हैं।

रावण का बिसरख गांव में हुआ था जन्म

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर में बिसरख गांव में भी दशहरा नहीं मनाया जाता है। यह रावण का दहन भी नहीं होता। यहां के करी 5,500 निवासी मानते है कि, रावण और उसके दो भाईयों का जन्म यहीं हुआ था। वह कहानियां पर अपने पुर्खों से सुनते आ रहे हैं।

रावण को बताया शिव भक्त और ज्ञानी

यूपी के आगरा में सारस्वत ब्राह्मण समाज रावण का पुतला नहीं जलाता, बल्कि उसकी पूजा करता है। वे कहते हैं कि रावण, भगवान शिव के प्रबल भक्त और ज्ञान के भंडार थे। वे कहते हैं कि सारस्वत ब्राह्मण भी रावण का सम्मान करता हैं क्योंकि वह उनके वंश के थे।


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