Tuesday, 4 October 2022

इस सरकारी बैंक में लोअर स्टाफ को अब नहीं मिलेगी 30 दिन से अधिक की नौकरी!

नई दिल्ली: सरकार अधिक से अधिक लोगों को रोजगार (Job) देना चाहती है। सरकार चाहती है कि मजदूरों को सही-सही मजदूरी मिले। कोई बिचौलिया उनकी हकमारी नहीं करे। लेकिन, यूपी का एक सरकारी बैंक कुछ अलग ही राह पर चल रहा है। हम बात कर रहे हैं केंद्र और राज्य सरकार की हिस्सेदारी वाले बैंक ऑफ बड़ौदा समर्थित यूपी के क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक बड़ौदा यू पी बैंक (Baroda U P Gramin Bank) की। इस बैंक ने कुछ अलग ही सरकुलर निकाल दिया है। इसके सरकुलर में कहा गया कि अब बैंक की किसी भी ब्रांच या ऑफिस में कैजुअल बेसिस (Casual Worker) पर चपरासी या सफाईकर्मी को 30 दिन से ज्यादा की नौकरी पर नहीं रखेगा। साथ ही कहा गया है कि बैंक खाते या वॉउचर से उक्त श्रमिक को भुगतान नहीं होगा। उसके लिए ब्रांच मैनेजर अपने नाम पर पैसे निकालेंगे और श्रमिक को नकद में भुगतान होगा। क्या कहता है सरकुलर बड़ौदा के मुख्यालय से पिछले सप्ताह जारी एक सरकुलर में ऐसा निर्देश दिया गया है। इसमें कहा गया है कि कोई भी ब्रांच मैनेजर कैजुअल वर्कर को नहीं रख सकेगा। असाधारण परिस्थितियों में वह किसी चपरासी या सफाईकर्मी को रखता है तो उसे भी अधिकतर 30 दिनों के लिए रखेगा। उसका भुगतान बैंक खाते या बैंक वाउचर से नहीं होगा। उसकी मजदूरी के भुगतान के लिए ब्रांच मैनेजर बैंक से पैसे लेंगे और मजदूर को नकद में भुगतान होगा। ऐसी व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि कोई मजदूर बैंक में पक्की नौकरी की मांग को लेकर कोर्ट न चला जाए। वह बैंक भुगतान का प्रमाण देकर अपनी बात पर जोर नहीं डाल सके। हर महीने बदलना होगा कर्मचारी को इस सरकुलर में लिखा गया है कि कि अब बैंक में चपरासी, मैंसेजर, सफाई कर्मचारी जैसे छोटे कर्मचारियों को अधिकतम 30 दिनों के लिए रखा जाएगा। मतलब कि उन्हें हर महीने बदलना होगा। काम के एवज में उन्हें मजदूरी भी नकद, बिना किसी लिखा पढ़ी के मिलेगी। उनका पैसा बैंक से तो निकलेगा, लेकिन उसके लिए हस्ताक्षर मजदूर का नहीं, बैंक मैनेजर का होगा। जो भी अधिकारी इस आदेश का पालन नहीं करेगा, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। अधिकारी कर रहे हैं खेल रीजनल रूरल बैंक कर्मचारियों के संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ आरआरबी इम्पलायीज के महासचिव शिवकरन द्विवेदी का कहना है कि बैंक के बड़े अधिकारी पहले से ही इस तरह का खेल कर रहे हैं। यह सरकुलर इस खेल पर परदा डालने वाला है। उनका कहना है कि एक ओर तो सरकार चाहती है कि मजदूरों को सही सही मजदूरी मिले। कोई उसमें कट नहीं मारे। तभी तो मनरेगा मजदूरों की मजदूरी सरकार उनके बैंक खाते में भेज रही है। यहां, बैंक में ही, मजदूरों के साथ अन्याय को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब तो मजदूरों को सही मजदूरी मिलने पर भी प्रश्नचिह्न है। इस बैंक में हजारों कर्मचारी यूं ही काम करते हैं बड़ौदा यूपी ग्रामीण बैंक उत्तर प्रदेश के 31 जिलों में फैला है। इसके कुल ब्रांचों की संख्या 1983 है। इसके साथ ही बैंक के हेड आॅफिस और अन्य आॅफिस भी कार्यरत हैं। उनमें पर्मानेंट चपरासी या सफाई कर्मचारी काफी कम हैं। इनकी जगह डेली वेज पर कर्मचारियों को रखा जा रहा है। द्विवेदी का कहना है कि इस बैंक में करीब चार हजार अनियमित कर्मचारी हैं। इनमें से करीब 2000 कर्मचारी तो सिर्फ साफ सफाई के लिए ही रखे गए हैं। बैंक के इस सरकुलर से इनका शोषण बढ़ेगा।


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