नई दिल्ली: बजट में इनकम टैक्स छूट की सीमा बढ़ने का ऐलान होते ही शेयर बाजार उछल गया। जैसे ही उसे 'असलियत' का एहसास हुआ उसकी हंसी गायब होने लगी। शेयर बाजार शरीर में दिल की तरह है। हर हरकत पर उसकी धड़कनें तेज और धीमी होती हैं। वह बिना प्रतिक्रिया दिए रह ही नहीं सकता है। वित्त मंत्री ने बुधवार को मोदी सरकार का अंतिम पूर्ण बजट पेश किया। इसमें उन्होंने इनकम टैक्स की नई व्यवस्था को आकर्षक बनाने का जुगाड़ किया। इसका ऐलान वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में हुआ था। दो साल पहले लाई गई इस व्यवस्था को फीकी प्रतिक्रिया मिली। ज्यादातर लोगों ने बिना डिडक्शन और एक्जेम्पशन वाली व्यवस्था में जाने के बजाय इनकम टैक्स की पुरानी व्यवस्था में रहने का फैसला किया। इसमें उन्हें सेविंग पर टैक्स से छूट मिलती है। भारतीय सेविंग को बहुत ज्यादा तवज्जो देते हैं। इसका फायदा भी हुआ है। न सिर्फ लोगों को, बल्कि सरकार को भी। इसने मुश्किल समय में अर्थव्यवस्था का दिवाला निकलने से बचाया है। जब मंदी ने पूरी दुनिया पर गाज गिराई भारत चट्टान की तरह खड़ा रहा। लोगों की छोटी बचत ने मंदी के तूफान में भी देश की अर्थव्यवस्था पर आंच नहीं आने दी। हालांकि, सीतारमण के ताजा बजट ने बचत की सोच पर हथौड़ा चला दिया है। सरकार 'बचत' को हतोत्साहित करने वाली इनकम टैक्स की नई व्यवस्था की तरफ लोगों को ले जाना चाहती है। वहीं, सच यह है कि यही बचत लोगों को गरीब होने से बचाती है। वरना जिस तरह दवा-पानी का खर्च बढ़ा है, उसमें सिर्फ एक बार अस्पताल में भर्ती होना किसी को गरीब बनाने के लिए काफी है। बिना पुश किए कोई नहीं खरीदता इनवेस्टमेंट प्रोडक्ट वित्त मंत्री ने इनकम टैक्स की नई व्यवस्था के तहत पर्सनल इनकम टैक्स छूट की सीमा को बढ़ाया है। इसे बढ़ाकर 7 लाख रुपये किया गया है। यानी किसी की इनकम 7 लाख रुपये तक है तो उसे टैक्स नहीं देना होगा। अभी तक यह लिमिट 5 लाख रुपये थी। इसके अलावा टैक्स स्लैब को सात से घटाकर पांच किया गया है। बेशक, इनकम टैक्स की नई व्यवस्था कम्प्लायंस के लिहाज से अच्छी है। लेकिन, यह सेविंग को प्रोत्साहित नहीं करती है। इस व्यवस्था में टैक्स के रेट कम हैं। लेकिन, इसमें तमाम तरह के एक्जेम्पशन और डिडक्शन का बेनिफिट नहीं मिलता है। एक्जेम्पशन और डिडक्शन बेनिफिट पाने के लिए ही लोग अब तक इनवेस्टमेंट प्रोडक्ट्स में निवेश करते रहे हैं। फिलिप कैपिटल में एडवाइजर प्रतीक मिश्रा कहते हैं कि आज भी देश में लोगों को इनवेस्टमेंट प्रोडक्ट खरीदने के लिए पुश करना पड़ता है। बहुत कम लोग हैं जो अपने आप इंश्योरेंस और सिप शुरू करते हैं। इसका कारण है कि स्कूलों और कॉलेजों में फाइनेंशियल लिट्रेसी पढ़ाने की कोई व्यवस्था नहीं है। लोग फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स के बारे में बहुत कम जानते हैं। टैक्स बचत के लिए ही ज्यादातर लोग म्यूचुअल फंड की ईएलएसएस जैसी स्कीमों में निवेश करते थे। अपने और सीनियर सिटीजन पैरेंट्स के लिए इंश्योरेंस पॉलिसी भी लोग उसके बेनिफिट्स के कारण कम टैक्स बचत के लिए ज्यादा खरीदते थे। इस लिहाज से बजट 2023 सेविंग पर हथौड़ा मारता है। पूरा फोकस को लुभावना बनाने पर वित्त मंत्री ने बिना छूट वाली नई टैक्स व्यवस्था को लुभावना बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसके तहत इनकम टैक्स लिमिट तो बढ़ाई ही गई है, इसे 'डिफॉल्ट' बनाने का प्रस्ताव भी किया गया है। 'डिफॉल्ट' से मतलब यह है कि इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त आपने ऑप्शन नहीं चुना तो खुद ही आप नई इनकम टैक्स व्यवस्था में मूव कर जाएंगे। इस तरह सरकार ने नई टैक्स व्यवस्था को बड़ा पुश दिया है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह केवल उन्हीं लोगों के लिए फायदेमंद है, जो कोई सेविंग नहीं करते हैं। वहीं, बचत को बढ़ावा देने वाली इनकम टैक्स की पुरानी व्यवस्था को जस का तस रखा गया है। इनकम टैक्स की पुरानी व्यवस्था में 2.5 लाख रुपये की इनकम पर जीरो इनकम टैक्स लगेगा। 2.5 लाख रुपये से 5 लाख रुपये की इनकम पर पांच फीसदी, 5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये की इनकम पर 20 फीसदी और 10 लाख रुपये से ज्यादा की इनकम पर 30 फीसदी टैक्स लगेगा। जहां तक नई टैक्स व्यवस्था का सवाल है तो इनकम टैक्स स्लैब के तहत 3 लाख रुपये तक की आय पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। 3 लाख रुपये से 6 लाख रुपये पर 5 फीसदी, 6 से 9 लाख रुपये पर 10 फीसदी, 9 लाख रुपये से 12 लाख रुपये पर 15 फीसदी, 12 लाख रुपये से 15 लाख रुपये तक 20 फीसदी और 15 लाख रुपये से ज्यादा की इनकम पर 30 फीसदी टैक्स लगेगा। क्या बचत के बजाय खर्च को प्रोत्साहित करना चाहती है सरकार? साफ है कि सरकार का झुकाव नई इनकम टैक्स व्यवस्था की ओर है। यह फाइनेंशियल प्रोडक्ट में निवेश करने पर मिलने वाली रियायतों को घटाती है। इन प्रोडक्टों में म्यूचुअल फंड की टैक्स सेविंग स्कीमें, इंश्योरेंस प्रीमियम पर खर्च इत्यादि शामिल हैं। होम लोन के ब्याज का पेमेंट करने वालों को भी फायदा नहीं होगा। भारतीय बचत को कितनी तवज्जो देते हैं, उसे म्यूचुअल फंड सिप के आंकड़ों से समझा जा सकता है। यहां सिप को सिर्फ इसलिए लिया गया है क्योंकि यह छोटी बचत का सबसे आसान तरीका है। दूसरी बात यह हैं कि हाल में इसे लेकर लोगों में जागरूकता भी बढ़ी है। म्यूचुअल फंड उद्योग के संगठन एम्फी के आंकड़ों की मानें तो सिर्फ दिसंबर 2022 में सिप के जरिये 13,573 करोड़ रुपये का कलेक्शन हुआ था। वित्त वर्ष 2022-23 में 1,14,154 करोड़ रुपये सिप के जरिये निवेश किए गए। हाल के वर्षों में यह निवेश लगातार बढ़ा है। यह पैसा इक्विटी और डेट इंस्ट्रूमेंट में लगता है। इससे प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर बाजार किसी भी आंधी में खड़े रहते हैं। जब विदेशी निवेशक (एफआईआई) पैसा निकालते हैं तो घरेलू बचत के जरिये निवेश का यही पैसा अर्थव्यवस्था को संभालता है। यह और बात है कि बजट 2023-24 में सरकार ने इस बात को नजरअंदाज किया है। बजट 2023-24 बचत के बजाय खर्च को प्रोत्साहित करने वाला है।
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