मॉस्को : आज दुनिया के कई देश अपने यातायात, खासकर ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने के लिए नई-नई टेक्नोलॉजी को अपना रहे हैं। कहीं बुलेट ट्रेन चलाने की तैयारी की जा रही है तो कहीं हाइपरलूप ट्रेनों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जा रहा है। ट्रेनों की यह प्रतिस्पर्धा काफी पुरानी है और दशकों से चली आ रही है। शीत युद्ध के दौरान प्रतिद्वंद्वी अमेरिकी रेलवे के खिलाफ सोवियत संघ ने एक बार 'जेट इंजन' से लदी एक ट्रेन तैयार की थी। उस जमाने में यह ट्रेन 350 किमी प्रति घंटे की रफ्तार तक पहुंच सकती थी। डेलीस्टार की खबर के अनुसार, इस प्रोजेक्ट को 'स्पीडी वैगन-लेबोरेटरी' कहा गया था। इस प्रोजेक्ट से इंजीनियर हाई स्पीड का नया वर्ल्ड रेकॉर्ड सेट करना चाहते थे। 1970 तक उन्हें यह अहसास हुआ कि याक-40 हवाई जहाज में इस्तेमाल किए जाने वाले दो एआई-25 इंजन फिट करके वे न्यूयॉर्क सेंट्रल रेलवे के एम-497 प्रोजेक्ट, जिसका कोडनेम 'ब्लैक बीटल' था, को टक्कर दे सकते हैं।
350 किमी/घंटे की रफ्तार का था लक्ष्य
अमेरिका ने देखा कि उनके प्रयासों से उनकी ट्रेन 296 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रही है। सोवियत संघ ने कहा कि अगर उनके ट्रैक सक्षम हुए तो उनकी ट्रेन 350 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकती है। Kalininsky Carriage Works ने 1960 के दशक में इस फ्यूचरिस्टिक ट्रेन के डिजाइन पर काम करना शुरू कर दिया था। अक्टूबर 1970 में आधिकारिक तौर पर इसका अनावरण किया गया और 1975 में इसे बंद कर दिया गया था।बुलेट ट्रेन से तेज फिर भी फेल
हालांकि यह ट्रेन ब्लैक बीटल की तुलना में धीमी थी, लेकिन जापान की पहली बुलेट ट्रेन शिंकानसेन से तेज थी। यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार ट्रेन सोवियत रेलवे के कुछ सार्वजनिक हिस्सों में चलती थी, लेकिन आखिर में यह तय हुआ कि गैसोलीन इंजन बहुत ज्यादा महंगे हैं जिनका खर्च नहीं उठाया जा सकता। हालांकि प्रोजेक्ट का इकलौता ज्ञात अवशेष पीटर्सबर्ग स्क्रैप यार्ड में जर्जर वैगन के रूप में मौजूद है।from https://ift.tt/FcxD2Lp
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