Friday, 17 February 2023

पाकिस्‍तानी मजदूरों के साथ गुलामों जैसा बर्ताव कर रहे खाड़ी के मुस्लिम देश, भयावह हालात का खुलासा

इस्‍लामाबाद: आर्थिक तंगी में फंसे पाकिस्‍तान के लिए एक और बुरी खबर खाड़ी देशों से आ रही है। तंगी की वजह से पहले ही अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर पहले ही उसे शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन अब इस नए घटनाक्रम के बाद उसके लिए मुश्किलें और बढ़ गई हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक खाड़ी देशों में काम करने वाले पाकिस्‍तानी मजदूरों को बेहद ही खराब स्थितियों में काम करना पड़ रहा है। ये मजदूर अपने मालिक की दया पर निर्भर हैं और भेदभाव में जीवन बिता रहे हैं। किताब में किए गए दावे गुरुवार को राजधानी इस्‍लामाबाद में एक किताब को रिलीज किया गया। इस किताब का टाइटल है, 'द कॉस्‍ट ऑफ लिविंग: माइग्रेंट वर्कर्स एक्‍सेस टू हेल्‍थ इन गल्‍फ,' जिसे दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में मौजूद सिविल सोसायटीज ऑर्गनाइजेशंस के साथ मिलकर तैयार किया गया है। इस किताब में उन मजदूरों की स्थिति का जिक्र है जो खाड़ी देशों में अलग-अलग सेक्‍टर में लगे हुए हैं। इस किताब में कहा गया है कि खाड़ी देशों में बुरी हालत में जिंदगी जीने वाले मजदूरों को पाकिस्‍तानी दूतावास की तरफ से भी जरूरी मदद नहीं मिल रही है। इस कार्यक्रम में अंतरराष्‍ट्रीय मजदूर संघ के अलावा पाकिस्‍तानी सरकार के भी कुछ लोग मौजूद थे। मजदूरों को नहीं मिलती मदद इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्‍तानी मजदूरों को मजदूर भर्ती प्रक्रिया के बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही उन्‍हें कोई मदद मिलती है। ऐसे में उनके साथ सख्‍त बर्ताव किया जाता है। शोषण करने वाले कानूनों और पाकिस्‍तान की तरफ से उनके हितों के लिए बात न करना उनके इस शोषण की सबसे बड़ी वजह बन गया है। ये मुद्दे तब और जटिल हो जाते हैं जब खाड़ी देशों में बसे मजदूरों को सही स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं। स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं तक नहीं मानवाधिकार के लिए बने संसदीय आयोग के चौधरी शफीक की मानें तो मजूदरों का शोषण कोई नई बात नहीं है। ये ऐसे मुद्दे हैं जो उनके परिवारों, समुदायों और देश की अर्थव्‍यवस्‍था पर असर डालते हैं। यह पहली ऐसी रिपोर्ट है जिसमें पाकिस्‍तानी मजूदरों की स्थिति को बताया गया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि गल्‍फ को-ऑपरेटिव काउंसिल (GCC) के छह देशों में इन मजदूरों को सही स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं तक नहीं मिली हैं। इन देशों में करीब 30 मिलियन मजदूर काम करते हैं और यह कुल आबादी का 50 फीसदी से भी ज्‍यादा है। खराब स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं के चलते उनकी जीवन पर बुरे प्रभाव की बात भी कही गई है।


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