Tuesday 24 January 2023

समाज तोड़ने वाले बयानों पर नीतीश चुप क्यों? 2024 के लिए मंडल को जिंदा करने की तैयारी?

पटना: बिहार की राजनीति में यह वो खास समय है जब लगभग प्रबुद्ध नेता दिशाहीन हो गए है। आश्चर्य तो यह है कि जिस समाज को आगे ले जाने का संकल्प लेते हैं उस संकल्प को वे खुद अतीत की साए में ढक कर निज स्वार्थ की राजनीति करने लगे हैं। पिछले दिनों राज्य में बयानवीरों ने जो विभेद की सीमा रेखा खींची है वह आज के समय में प्रासंगिक भी नही थी। ऐसे में राज्य के मुख्यमंत्री की चुप्पी दिलों को बांटने वाली वर्तमान राजनीति के नायक की प्रतीति करती है। सवाल तो राज्य के विभिन्न वर्गों के आम लोगों ने भी उठाया है कि बयानों की राजनीति से किसका विकास करना चाहते हैं नीतीश कुमार।

क्या क्या न कहा गया!

बिहार की राजनीति को बेलगाम कहा जा रहा है तो इसके कुछ कारण भी हैं। यह कारण सरकार में शामिल वरीय मंत्रियों ने समाज को दिया है। हालिया बयान राज्य के राजस्व मंत्री आलोक मेहता था जो चौंकानेवाला था। राजद कोटे से आने वाले मंत्री आलोक मेहता बहुत ही साफ शब्दों में देश को 90 और 10 प्रतिशत वाली जनसंख्या में विभाजित करते हैं। वो यहां तक कह जाते है कि इन्हीं 10 प्रतिशत वालों को अंग्रेज अपनी जी हजूरी करने के लिए जाते-जाते हजारों एकड़ जमीन दी। वर्तमान राजनीत में जहां राजद के नेतृत्वकर्ता ए टू जेड की राजनीति की बात करते हैं उसके वरक्स मेहता की ये नीति वर्तमान राजनीति को कहां ले जाना चाहती है? हद तो यह है कि विरोध के स्वर भी महागठबंधन में शामिल नेता ही उठाते हैं, और वह भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने। पुराने और विचारवान नेता और विधान पार्षद महेश्वर हजारी ने आलोक मेहता के बयान का विरोध किया। उन्होंने मंत्री आलोक मेहता के उस बयान का विरोध किया जिसमें उन्होंने कहा कि ये 10 प्रतिशत (सवर्ण) अंग्रजों के दलाल थे और मंदिरों में घंटियां बजाया करते थे। विधान पार्षद ये कहते हैं कि 'महाराणा प्रताप ,मंगल पांडे भी इसी दस प्रतिशत का हिस्सा थे। जब युद्ध का मैदान होता था तो मोहम्मद गौरी के हमलों को इन्ही 10 प्रतिशत ने झेला, तब माताएं 12 वर्ष के बच्चों को तिलक लगाकर भेज देती थीं और खुद जौहर कर लेती थी। वो यही 10 प्रतिशत वाली माताएं थी। हमारी संख्या इसलिए भी कम है। संख्या के बल पर हमको मत आंकिए।'

समाज तोड़ने वाला बयान कोई पहली बार नहीं

राज्य के राजस्व मंत्री कोई अकेले मंत्री नहीं है जिन्होंने अपने बयान से समाज की व्याप्त व्यवस्था को तोड़ने का काम किया, बल्कि गंगा जमुनी संस्कृति को भी खंडित करने का काम किया। शिक्षा मंत्री प्रो चंद्रशेखर ने रामचरिमानस पर टिका टिप्पणी वह भी अधूरी समझ के साथ। उस प्रसंग की जरूरत आज की राजनीति कह लें या नीतीश कुमार के सेक्युलर राजनीति के फलसफे पर थी क्या ? फिर ऐसे बयानों पर नीतीश कुमार का कानूनी डंडा तो चलना चाहिए था। राजद के मंत्री सुरेंद्र यादव के बयान को ही देखें तो वह अपने देश के सैनिक पर हमला नहीं है क्या?

तो मुख्यमंत्री चुप क्यों हैं?

लोकतंत्र के फलसफे पर यह जरूरी है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जन विरोधी बयानों पर संज्ञान लेना चाहिए था। इसका स्वरूप उन्हें ही तय करना था। ऐसे बयानों पर रोक की करवाई का विशेष स्वरूप भी दिखना चाहिए था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मंत्रिपरिषद के सदस्य अगर इस तरह के समाज तोड़ने वाले बयान देते हैं, तो उन पर कार्रवाई करने के लिए वो स्वतंत्र हैं। पर ऐसा कुछ नहीं हो रहा है तो कहीं न कहीं महागठबंधन की राजनीति की मजबूरी दिखती है।

क्या कहते हैं भाजपा नेता?

भाजपा के प्रदेश प्रवकता डॉक्टर रामसागर सिंह कहते हैं कि 'मेरा आरोप तो यह है कि नीतीश जी ऐसे बयानवीरों को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने अब तक बयानवीरों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की। रामचरिमानस की समाज तोड़ने वाला बताया, सवर्ण को अंग्रेजों का दलाल बताया फिर भी नीतीश कुमार कार्रवाई नहीं करते हैं तो ऐसे बयानों पर उनकी सहमति मानी जाएगी। ऐसा लगता है कि एक बार फिर मंडल को पुनर्जीवित कर समाज को तोड़ने का प्लान किया जा रहा है।'


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