Monday, 8 May 2023

शोर मचाए तो सिर को तांबे की फैक्ट्री बना दूंगा...दिनदहाड़े बिल्‍डर को किडनैप करने वाले श्रीप्रकाश शुक्ला का पहला जुर्म

लखनऊ: यूपी की राजधानी लखनऊ में पार्क रोड जैसे अति व्यस्त इलाके में स्थित सरन चैम्बर टू के पहले तल पर बिल्डर मूलराज अरोड़ा का दफ्तर था। 13 मई 1997 की दोपहर करीब सवा बजे एक कार सरन चैम्बर टू के जीने के पास रुकी। तीन युवक कार से उतरे और सीढ़ियां चढ़ते हुए पहली मंजिल पर पहुंचे। सामने खड़े सुरक्षा गार्ड को पिस्टल दिखाकर बंदूक छीनी और चुपचाप खड़े रहने की धमकी दी। इसी बीच दो युवक दफ्तर का दरवाजा खोलकर दफ्तर के अंदर घुसे और मूलराज अरोड़ा के चैंबर में जा धमके। मूलराज के कुछ समझने से पहले ही एक युवक ने पीठ पर लटका बैग उतारा और उसमें से एके 47 राइफल निकालकर धमकाते हुए साथ चलने को कहा। जरा सा भी चिल्लाने या शोर मचाने पर सिर को तांबे की फैक्ट्री बनाने की धमकी दी।मूलराज अरोड़ा बिना कुछ बोले बाहर निकले और तीनों युवकों के साथ नीचे आ गए। युवकों ने कार की पिछली सीट पर बीच में बैठाया और तेजी से भाग निकले। अपहरण करने वाले कोई और नहीं बल्कि श्रीप्रकाश शुक्ला (Shri prakash shukla) और उसके साथी आनन्द पाण्डेय व सुधीर त्रिपाठी थे। पार्क रोड से प्रतिष्ठित बिल्डर्स मूलराज अरोड़ा का अपहरण कर श्रीप्रकाश शुक्ला की मारुति कार करीब 10 मिनट बाद गोमतीनगर के विराम खंड पांच में एक मकान के सामने रुकी। मकान के अंदर एक लाल बत्ती वाली एम्बेसडर खड़ी थी। आस-पास सन्नाटा था। कार रुकते ही मकान से एक युवक बाहर आया, जिसे श्रीप्रकाश और उसके साथी वीरेंद्र सिंह के नाम से संबोधित कर रहे थे। मकान सुधीर ने कुछ दिन पहले ही फर्जी नाम से दो महीने का एडवांस देकर किराए पर लिया था। वीरेंद्र ने एम्बेसडर कार निकाली और मूलराज को उसमें बैठाया। इस दौरान सुधीर लगातार मूलराज के पिस्टल लगाए था। मारुति को घर के अंदर खड़ा कर कवर डाल दिया। इसी बीच श्रीप्रकाश शुक्ला ने वीरेंद्र सिंह (जो खाकी कपड़े पहने था) को एम्बेसडर से लाल बत्ती हटा कर नीली बत्ती लगाने को कहा।

टेंडर को लेकर पहुंचे मोकामा

टेंडर यानी अपहृत। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके साथी जिसे भी अगवा करते थे या फिर अगवा करने का प्लान बनाते थे, उसे कोड भाषा में टेंडर बोलते थे। एम्बेसडर कार में लाल बत्ती हटा कर नीली लगाई गई और चालक की सीट वीरेंद्र सिंह ने संभाली। श्रीप्रकाश आगे बैठा जबकि मूलराज को लेकर सुधीर और आनन्द पीछे बैठे। कार फैजाबाद रोड पर तेजी से आगे बढ़ रही थी कि अचानक चिनहट नहर के आगे पुलिस की चेकिंग दिखी। हालांकि कार पर नीली बत्ती देख पुलिस वालों ने तुरंत बैरियर उठाया और सैल्यूट मारने के साथ ही जाने दिया। कुछ ऐसा ही बाराबंकी और रौनाही पुलिस चेकपोस्ट पर भी हुआ। ‘टेंडर’ को लेकर श्रीप्रकाश और उसके साथी मोकामा (बिहार) पहुंच गए। बिहार के डॉन सूरजभान ने उनके रहने के लिए मकान की व्यवस्था पहले से कर रखी थी।

वसूली को दे रहा था धमकी

एसटीएफ के पहले एसएसपी रहे रिटायर्ड आईपीएस अरुण कुमार बताते हैं कि श्रीप्रकाश गिरोह का यह पहला अपहरण था। अपहरण से पहले उसने अपने लड़कों (मुखबिरी करने वाले) से लखनऊ के बड़े व्यापारियों की कुंडली यानी पूरी दिनचर्या एकत्र करवाई थी। मूलराज ने लखनऊ में आशा अपार्टमेंट के नाम से एक के बाद एक तीन बहुखंडीय आवासीय कॉलोनी (फ्लैट कल्चर) बनाई थी। साथ ही चारबाग पुरानी लाइन स्टेशन के रिन्यूअल का काम भी मूलराज ने ही किया था। इसलिए श्रीप्रकाश की सूची में उसका नाम सबसे ऊपर था। इसके बाद मूलराज के घर पर फोन कर अशोक सिंह के नाम पर वसूली मांगी। साथ ही उसकी पूरी दिनचर्या भी बताई थी। लेकिन, मूलराज ने यह कहते हुए फोन काट दिया कि उसके पास पैसा नहीं है। श्रीप्रकाश ने दूसरे दिन फिर फोन किया और उसके पूरे व्यापार का लेखा-जोखा फोन पर गिना डाला। श्रीप्रकाश ने वसूली के लिए मूलराज को कई बार धमका चुका था, लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद श्रीप्रकाश ने 13 मई को उसका अपहरण कर लिया।

भाई के जरिए मिली फिरौती

14 मई से ही श्रीप्रकाश शुक्ला ने मूलराज पर एक करोड़ रुपये की फिरौती का दबाव बनाना शुरू कर दिया। कई बार उसके घर फोन किया। रिटायर्ड आईपीएस राजेश पाण्डेय बताते हैं कि बातचीत के दौरान श्रीप्रकाश अक्सर मूलराज अरोड़ा की बेटी से अश्लील शब्दों का प्रयोग करता था। आखिर, मूलराज टूट गया और पचास लाख देने को तैयार हो गया। इसके साथ ही कहा कि उसके घर फोन न करने और अपने भाई से बात करवाने की गुजारिश की। मूलराज के भाई उस समय बिहार में ही रेलवे के बड़े अधिकारी थे। बातचीत के बाद पटना रेलवे स्टेशन पर सूरजभान के लोगों ने मूलराज के भाई से फिरौती के पचास लाख रुपये लिए और श्रीप्रकाश शुक्ला तक पहुंचा दिए। इसके बाद श्रीप्रकाश ने यह कहते हुए मूलराज को एक गाड़ी से लखनऊ भेजा कि बाकी का पचास लाख लेने जल्द आएगा। साथ ही मुंह बंद रखने को कहा था। इस तरह सात दिन बाद यानी 20 मई को मूलराज अपने घर पहुंचे सके।

फोन से हुआ खुलासा

श्रीप्रकाश के डर से मूलराज ने पुलिस और एसटीएफ को अपहरण की सही जानकारी नहीं दी। बताया कि शायद उसे दिल्ली में कहीं रखा गया था। इस दौरान पुलिस ने उसके घर और दफ्तर के फोन टेप करने शुरू कर दिए थे। 23 मई की शाम श्रीप्रकाश ने फिर मूलराज के घर फोन किया और बाकी पचास लाख रुपये मांगे। क्राइम रिपोर्टर मनीष मिश्रा बताते हैं कि इस फोन के बाद एसटीएफ और लखनऊ पुलिस को पुख्ता हो गया कि मूलराज का अपहरण श्रीप्रकाश शुक्ला गैंग ने किया था और उसे उठा कर दिल्ली नहीं बल्कि, बिहार ले गए थे। श्रीप्रकाश का यह फोन भी वहीं से आया था। राजेश पाण्डेय बताते हैं कि हफ्ते भर बाद ही श्रीप्रकाश बाकी पचास लाख रुपये के लिए मूलराज के घर पहुंचा और बाहर बुलाकर अपनी कार में बैठा लिया। इसी मुलाकात में मूलराज ने अपने बचाव में श्रीप्रकाश को लखनऊ के कई बड़े व्यापारियों की जानकारी दी। जो बाद में श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके गैंग के शिकार बने। मूलराज के अपहरण के बाद यूपी एसटीएफ ने पहली बार उसे अगवा करने वालों के कंप्यूटर चित्र बनवाए थे। हालांकि, वह बहुत सार्थक साबित नहीं हुए।


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