नई दिल्ली कोरोना के कहर के बीच और लॉकडाउन के दौर में हर किसी को भविष्य की चिंता सता रही है। कब खत्म होगा यह बुरा सपना? आगे देश और दुनिया की स्थिति क्या होगी? क्या हम इन हालात से उबर पाएंगे? ऐसे सवाल हर इंसान के मन या जुबान पर हैं। अपने ढाई दशक के बेहद प्रतिस्पर्धी करियर में तमाम तरह के उतार-चढ़ाव देखने वाले वाले सचिन रमेश तेंडुलकर से यही सब सवाल करने पर वह उदाहरण देते हैं उस दौर का जब वह खुद,टीम इंडिया और उनके तमाम फैंस निराशा के आखिरी पायदान पर थे। तब भी ऐसा लग रहा था कि यहां से कैसे उबरेंगे। क्या होगा भारतीय क्रिकेट का भविष्य? लेकिन टीम ने न केवल उन कठिन चुनौतियों का बखूबी सामना किया बल्कि वर्ल्ड चैंपियन भी बनी। यह कहानी है 2007 वर्ल्ड कप की जब दिग्गजों से सजी भारतीय टीम बांग्लादेश की चुनौती पार नहीं कर सकी थी और वर्ल्ड कप के पहले दौर से बाहर हो गई थी। सचिन ने अपने 47वें जन्मदिन की पूर्व संध्या पर कोरोना के इस कठिन दौर और आगे की राह पर NBT से एक्सक्लूसिव बातचीत की। आपके करियर की ऐसी कोई घटना जिसे आप मौजूदा वक्त से जोड़ कर देख सकते हैं? जब ऐसा लगा हो कि अब आगे क्या होगा। बेहद मुश्किल समय है। इससे उबरना आसान नहीं होगा। लेकिन आप तमाम बाधाओं को पार करते हुए विजेता बनकर उभरे हों। अगर संकट के इस दौर को खेल से रिलेट करने की बात करेंगे तो मैं 2007 के क्रिकेट वर्ल्ड कप को याद करना चाहूंगा। मुझे लगता है कि वह भारतीय क्रिकेट का लोएस्ट टाइम था। तब भारतीय टीम पहले राउंड में ही बाहर हो गई थी। हम उस खराब समय से बाहर निकले। वहां से हमारी यात्रा 2011 वर्ल्ड कप की तरफ शुरू हुई थी। हम चार साल बाद ही चैंपियन बनकर उभरे थे। वह एक बहुत बड़ा कायापलट था। इस बेहद मुश्किल दौर में क्या जीवन के प्रति नजरिए में बदलाव आया है या आगे आएगा? बिल्कुल आएगा। जीवन की जो सिंपल चीजें होती हैं उनको हम वैल्यू करना सीखेंगे। अब देखिए कि लॉकडाउन से पहले हम बहुत सारी चीजों का मूल्य नहीं समझते थे। हम सोचते थे कि जैसे चलता रहा है वैसे ही सब कुछ चलता रहेगा। जब हमें वह सब चीजें नहीं मिल रही हैं तो हम उनका महत्व समझ रहे हैं। जैसे एक छोटी-सी चीज है। जब मर्जी हमने गाड़ी की चाबी उठाई। गाड़ी में बैठे और जहां जाना था वहां के लिए निकल पड़े। यह आज संभव नहीं हो पा रहा है। लॉकडाउन के चलते हम इधर-उधर बाहर नहीं घूम सकते। लेकिन यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि यह हमारे लिए जरूरी है। आज सरकार हेल्थ एक्सपर्ट्स से मशविरा करके जो फैसले ले रही है वह हमारे लिए ही है। देश की भलाई के लिए है। जानें बचाने के लिए है। इसलिए हमें इनका पूरी तरह पालन करना चाहिए। जब पूरी तरह घूमने-फिरने की आजादी होती है तो हम बहुत-सी चीजों के बारे में सोचते नहीं। बस यूं ही कर देते हैं। यह मानकर कि यह तो सामान्य चीजें हैं। मेरे लिए नॉर्मल रूटीन है। अब मुझे लगता है कि आगे हम छोटी-छोटी बातों को वैल्यू करना सीखेंगे। लॉकडाउन के दौरान आपकी दिनचर्या में क्या बदलाव आया है? आप क्या कुछ अलग कर पा रहे हैं? सुबह घर में ही ट्रेनिंग करता हूं। फिर अपनी कंपनी एसआरटी के स्टाफ के साथ फोन या विडियो कॉल के जरिए मीटिंग करता हूं और जरूरी चीजें डिस्कस करता हूं। इसके बाद दोनों बच्चों के साथ समय बिताता हूं। मेरे दोनों बच्चे 20 साल से अधिक के हो गए हैं। उनका अपने-अपने दोस्तों का ग्रुप है और अपनी दुनिया है। अब जबकि हम सभी घर में हैं तो एक-दूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताते हैं। मेरी मां भी यही कह रही हैं कि उन्हें मेरे साथ ज्यादा समय मिल रहा है आजकल। हमारा पूरा परिवार एक साथ बैठता है तो कुछ बोर्ड या विडियो गेम्स भी खेलते हैं। ऐसा नॉर्मली नहीं हो पाता था। कोई ऐसी चीज जिसे आप मिस कर रहे हों इन दिनों? दोस्तों का साथ मिस कर रहा हूं। हम फोन पर बात तो कर लेते हैं लेकिन जैसे हम एक-दूसरे के घर आते-जाते हैं और साथ खाना खाते हैं वह सब नहीं हो पा रहा है। सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में यही चीज सब लोग मिस कर रहे होंगे। कोरोना के असर के बाद क्या आपको लगता है कि खेल बंद दरवाजों के भीतर होंगे? दर्शकों को अनुमति नहीं दी जाएगी? खेल का फ्यूचर कैसा देखते हैं आप? मुझे लगता है कि क्लोज डोर गेम्स करना और दर्शकों को स्टेडियम में नहीं आने देने से खेल से काफी एनर्जी चली जाएगी। जैसे कोई खिलाड़ी अगर चौका मारता है या फिर विकेट लेता है और उसके बाद दर्शकों का जिस तरह का रिस्पॉन्स होता है उससे खिलाड़ियों को काफी एनर्जी मिलती है। अगर दर्शकों को स्टेडियम में नहीं आने दिया जाएगा तो खेल से वह एक एलिमेंट मिस हो जाएगा। हालांकि, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि बंद स्टेडियम में मैच नहीं होने चाहिए। लेकिन ऐसा होने से खेल के दौरान एक खालीपन जरूर महसूस होगा। भविष्य में क्या खिलाडियों के जश्न मनाने का अंदाज भी बदलेगा? अभी हर जगह लोग सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर जागरूक हो गए हैं। हम अगर कोरोना का असर खत्म करने में सफल भी रहे तो खिलाड़ियों के दिमाग में तो यह बात तो रहेगी ही रहेगी। मुझे लगता है कि सेलिब्रेशन का अंदाज बदल सकता है। जैसे एक दूसरे को गले लगाना, एक-दूसरे को हाई फाइव्स देना या विकेट को सेलिब्रेट करना। इस तरह जश्न मनाने के अंदाज भविष्य में बदल जाएगा। यूनिसेफ के ऐंबैसडर के तौर पर काफी सालों से मैं सबको निजी साफ-सफाई का संदेश देता रहता हूं। प्लेयर्स को भी इसका काफी ध्यान रखना होगा। जूनियर्स के लिए मोटिवेशन कायम रखने के टिप्स देना चाहेंगे मैं जूनियर्स को यही मैसेज देना चाहूंगा कि यह एक चैलेंजिंग टाइम है। सबके लिए है। आप अकेले शामिल नहीं हैं इसमें। हम सबको इससे लड़ना है। यही सलाह दूंगा कि आप अपने पुराने शौक को एक बार फिर शुरू कर सकते हैं। याद करें जब आप बच्चे थे, बिल्कुल छोटे थे तब आपकी हॉबीज क्या थीं। आप अपनी उन हॉबीज के साथ फिर से जुड़ जाएं। आपके घर में बड़े बुजुर्ग भी होंगे। अगर आपके पैरंट्स हैं तो उनका ध्यान रखें। अगर आपके साथ आपके ग्रैंड पैरेंट्स हैं तो उनका भी ध्यान रखें। उनके साथ टाइम बिताएं। उनसे कुछ सीखें। आमतौर पर हम अपनी दुनिया में रहते हैं। उनके साथ बहुत कम समय बिताते हैं। उनको इस समय का फायदा उठाना चाहिए। कोई जरूरी नहीं कि उनसे कुछ सीखना ही है। आप उनके साथ यूं भी समय बिताएंगे तो उनको अच्छा लगेगा। घर में रहकर प्लेयर्स ऐसे कायम रखें अपनी स्किल्स आप घर पर रहकर भी अपनी स्किल्स कायम रख सकते हैं। जरूरी नहीं कि आप नेट्स पर ही सब कुछ कर पाएं। घर पर आप रेग्युलर ड्रिल्स कर सकते हैं। विजुअलाइजेशन का सहारा ले सकते हैं। ग्राउंड पर प्रैक्टिस करना और बात होती है। लेकिन विजुअलाइजिंग का भी अपना महत्व होता है। मैंने कई बार महसूस किया है कि आप होटेल्स के रूम में भी बैठकर बहुत कुछ कर सकते हैं। मेरे पास अगर हाथ में बैट है तो मैं कमरे में ही अपनी बैटिंग ड्रिल्स करता रहता था। उससे बहुत फर्क पड़ता है। तो इस वक्त आप फिजिकल ट्रेनिंग के अलावा मेंटल ट्रेनिंग भी कर सकते हैं। चाहे आप बैट्समैन हैं या बोलर। इस समय विजुअलाइजेशन का महत्व है और आप इसका सहारा लेते हुए ‘टच’ में रह सकते हैं।
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