बिहार के बगहा में एक ऐसा गांव है, साल में एक दिन के लिए पूरी तरह से वीरान हो जाता है. गांव के सभी लोग एक दिन के लिए अपना घरबार छोड़कर जंगल चले जाते है. जी हां, दिन के उजाले के साथ पूरा का पूरा गांव एकदम से वीरान हो जाता है. इस गांव लोग आज भी 200 साल पुरानी परपंरा के मुताबिक एक दिन के लिए अपना घर छोड़ देते हैं. वीरान होने वाला यह गांव बगहा का नौरंगिया है. गांव के सभी लोग जंगल में घर छोड़कर वनवासी हन गए हैं. नौरंगिया गांव में आज भी वर्षों पुरानी यह परंपरा उसी तरह से निभाई जाती है. यहां बैसाख के नवमी तिथि को गांव के लोग अपना-अपना घर छोड़कर 12 घंटे के लिए गांव से बाहर जंगल में चले जाते हैं. आधुनिकता की इस दौड़ में भी अंधविश्वास की जड़ें यहां इतनी मजबूत हैं कि इस गांव का एक आदमी भी गांव में रुकने की हिम्मत नहीं करता. वर्षों पुरानी इस परंपरा को बुजुर्ग के साथ-साथ बच्चे भी ढोने को मजबूर हैं. बुजुर्गों के अनुसार नौरंगिया गांव में हर साल दैवी प्रकोप आता था, जिसे रोकने के लिए एक संत ने साधना की. साधना के बाद वर्षों पूर्व संत ने बैसाख के नवमी तिथि को गांव को छोड़कर लोगों को बाहर चले जाने का फरमान सुनाया, जो आज भी वैसे ही कायम है. गांव के लोग इस परंपरा का बखूबी पालन करते हैं. इस दिन गांव में गांव के हर घर में ताला लटक जाता है. गांव वाले अपने बाल-बच्चों के साथ-साथ मवेशियों को भी जंगल में ले जाते हैं. थारु जनजाति बाहुल्य इस गांव के लोगों की मान्यता है कि इस तिथि को देवी मां गांव में आती है. प्राकृतिक आपदा से बर्बाद हो जाते गांव के लोगों के बीच दो सौ साल पुरानी परंपरा आज भी कायम है. इस वर्षों पुरानी परंपरा को आद भी गांव कोई आदमी तोड़ने की हिम्मत नहीं करता.
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