Friday, 4 May 2018

Historian Prof. Irfan Habib Special Conversation With Amar Ujala's On Muhammad Ali Jinnah - Exclusive: जिन्ना पर इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब से अमर उजाला की विशेष बातचीत

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दीपक शर्मा, अमर उजाला, अलीगढ़
Updated Fri, 04 May 2018 07:34 PM IST



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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर उठे बवाल के बाद देश भर में इस मुद्दे पर बहस शुरू हो गई है। ऐसे में राष्ट्रीय आंदोलन में जिन्ना की भूमिका और स्थिति को लेकर अमर उजाला ने प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के महत्वपूर्ण अंश।

सवाल- राष्ट्रीय आंदोलन से मोहम्मद अली जिन्ना किस तरह जुड़े?
जवाब- कांग्रेस के उदार गुट के बड़े नेता गोपाल कृष्ण गोखले, जो कि बहुत बड़े वकील भी थे, जिन्ना उनके सहायक थे। गोखले ही जिन्ना को कांग्रेस में लाए। उन्हीं के कहने पर जिन्ना ने चुनाव लड़ा और सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली में चुने गए।

सवाल- राष्ट्रीय आंदोलन में जिन्ना की भूमिका क्या रही?
जवाब- 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच हुए पैक्ट, जो कि लोकमान्य तिलक ने करवाया था, उसमें जिन्ना की बड़ी भूमिका रही। इसके बाद बहुत सालों तक कांग्रेस और मुस्लिम लीग की बैठकें एक जगह होती रहीं। इसके बाद 1919 में आए रौलेट एक्ट, जिसमें अखबारों को बंद करने और पुलिस को किसी को भी बंद करने के अधिकार दिए गए, का विरोध करने वालों में जिन्ना अग्रणी थे। विरोध करने वाले सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली के 20 सदस्यों में जिन्ना भी एक थे। इस संदर्भ में जिन्ना का एक मशहूर भाषण भी है। आई एम इंडियन फर्स्ट, इंडियन सेकेंड एंड इंडियन लास्ट। इसके अलावा साइमन कमीशन के विरोध में उतरे और होम रूल लीग का समर्थन कांग्रेस के साथ किया।

सवाल- जब दोनों की लड़ाई अंग्रेजों से थी तो पहला मतभेद कहां उभरा?
जवाब- अंग्रेज मुसलमानों के लिए सेपरेट इलेक्टोरल (मुसलमान को पहले मुसलमान वोट देंगे, उनके चुने पहले और दूसरे नंबर के उन प्रतिनिधियों को बाद में सब वोट देंगे। दोहरी वोटिंग ला रहे थे। जिन्ना ने कहा सभी एक साथ चुने जाएंगे केवल सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली में मुसलमानों के लिए 33 प्रतिशत सीटें अरक्षित हों। (कुछ कुछ जैसे आज एससी एसटी के लिए सीटें रिजर्व होती हैं) कांग्रेस 28 प्रतिशत सीटें दे रही थी। जबकि महात्मा गांधी न्यूट्रल थे। मान रहे थे कि सब अपने आप निपट जाएगा। इसी मामूली बात से मतभेद उभरना शुरू हो गए। हिंदू महासभा ने सिंध में अलग प्रांत की मांग कर डाली। बाद में फिर और चीजें भी जुड़नी शुरू हो गई। 1940 में लाहौर प्रस्ताव पास हुआ, लेकिन उस वक्त पाकिस्तान शब्द अस्तित्व में नहीं था। वह मामूली सी बात फिर बात बढ़ती ही रही।

सवाल- क्या जिन्ना अपने मकसद को हासिल करने में अंग्रेजों का साथ देते थे?
जवाब- कभी नहीं। आप जिन्ना को गलत कह सकते हैं, लेकिन अंग्रेजों का साथ देने वाला नहीं कह सकते। जिन्ना ने सावरकर की तरह अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी। आरएसएस ने अंग्रेजों का विरोध कब किया। जब संघ वालों ने परेड की शुरुआत करनी चाही तो अंग्रेजों ने कहा आप लोग परेड नहीं करेंगे। इन्होंने मान लिया। अंग्रेजों ने कहा खाकी शर्ट नहीं पहनोगे क्योंकि यह पुलिस की वर्दी से मिलती जुलती है। संघ ने मान लिया।

सवाल- जिन्ना कब-कब अलीगढ़ आए?
जवाब- एक बार तो 1938 में ही आए, जब छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दी गई। इसके अलावा 1942-43 में बड़ा जलसा हुआ। इसमें रेलवे स्टेशन से छात्र अपने हाथों से बग्घी खींचकर कैंपस तक लाए थे। इतना तो मुझे याद आ रहा है।

सवाल- एएमयू में लगी जिन्ना की तस्वीर पर जो विवाद हो रहा है, उसे किस तरह देखते हैं?
जवाब- मैं जब पढ़ता था तब भी तस्वीर लगी थी। लोक मान्य तिलक एक गंभीर मुकदमे में (अंग्रेजों के खिलाफ) एक बार छह साल के लिए और एक बार आठ साल के लिए जेल गए थे। इसके बाद 1916 में तिलक पर एक और मुकदमा चला। जिन्ना ने तिलक का मुकदमा लड़ा और बरी करवाया। तिलक का मुकदमा लड़ने वाले और बरी कराने वाले का विरोध ये लोग क्यों कर रहे हैं। मुझे लगता है कि यह सब चुनाव के मकसद से हो रहा है। कहीं चुनाव हो रहा है और कहीं होने वाला है। यही सबसे बड़ी वजह है।



अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर उठे बवाल के बाद देश भर में इस मुद्दे पर बहस शुरू हो गई है। ऐसे में राष्ट्रीय आंदोलन में जिन्ना की भूमिका और स्थिति को लेकर अमर उजाला ने प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के महत्वपूर्ण अंश।


सवाल- राष्ट्रीय आंदोलन से मोहम्मद अली जिन्ना किस तरह जुड़े?
जवाब- कांग्रेस के उदार गुट के बड़े नेता गोपाल कृष्ण गोखले, जो कि बहुत बड़े वकील भी थे, जिन्ना उनके सहायक थे। गोखले ही जिन्ना को कांग्रेस में लाए। उन्हीं के कहने पर जिन्ना ने चुनाव लड़ा और सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली में चुने गए।

सवाल- राष्ट्रीय आंदोलन में जिन्ना की भूमिका क्या रही?
जवाब- 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच हुए पैक्ट, जो कि लोकमान्य तिलक ने करवाया था, उसमें जिन्ना की बड़ी भूमिका रही। इसके बाद बहुत सालों तक कांग्रेस और मुस्लिम लीग की बैठकें एक जगह होती रहीं। इसके बाद 1919 में आए रौलेट एक्ट, जिसमें अखबारों को बंद करने और पुलिस को किसी को भी बंद करने के अधिकार दिए गए, का विरोध करने वालों में जिन्ना अग्रणी थे। विरोध करने वाले सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली के 20 सदस्यों में जिन्ना भी एक थे। इस संदर्भ में जिन्ना का एक मशहूर भाषण भी है। आई एम इंडियन फर्स्ट, इंडियन सेकेंड एंड इंडियन लास्ट। इसके अलावा साइमन कमीशन के विरोध में उतरे और होम रूल लीग का समर्थन कांग्रेस के साथ किया।

सवाल- जब दोनों की लड़ाई अंग्रेजों से थी तो पहला मतभेद कहां उभरा?
जवाब- अंग्रेज मुसलमानों के लिए सेपरेट इलेक्टोरल (मुसलमान को पहले मुसलमान वोट देंगे, उनके चुने पहले और दूसरे नंबर के उन प्रतिनिधियों को बाद में सब वोट देंगे। दोहरी वोटिंग ला रहे थे। जिन्ना ने कहा सभी एक साथ चुने जाएंगे केवल सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली में मुसलमानों के लिए 33 प्रतिशत सीटें अरक्षित हों। (कुछ कुछ जैसे आज एससी एसटी के लिए सीटें रिजर्व होती हैं) कांग्रेस 28 प्रतिशत सीटें दे रही थी। जबकि महात्मा गांधी न्यूट्रल थे। मान रहे थे कि सब अपने आप निपट जाएगा। इसी मामूली बात से मतभेद उभरना शुरू हो गए। हिंदू महासभा ने सिंध में अलग प्रांत की मांग कर डाली। बाद में फिर और चीजें भी जुड़नी शुरू हो गई। 1940 में लाहौर प्रस्ताव पास हुआ, लेकिन उस वक्त पाकिस्तान शब्द अस्तित्व में नहीं था। वह मामूली सी बात फिर बात बढ़ती ही रही।

सवाल- क्या जिन्ना अपने मकसद को हासिल करने में अंग्रेजों का साथ देते थे?
जवाब- कभी नहीं। आप जिन्ना को गलत कह सकते हैं, लेकिन अंग्रेजों का साथ देने वाला नहीं कह सकते। जिन्ना ने सावरकर की तरह अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी। आरएसएस ने अंग्रेजों का विरोध कब किया। जब संघ वालों ने परेड की शुरुआत करनी चाही तो अंग्रेजों ने कहा आप लोग परेड नहीं करेंगे। इन्होंने मान लिया। अंग्रेजों ने कहा खाकी शर्ट नहीं पहनोगे क्योंकि यह पुलिस की वर्दी से मिलती जुलती है। संघ ने मान लिया।

सवाल- जिन्ना कब-कब अलीगढ़ आए?
जवाब- एक बार तो 1938 में ही आए, जब छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दी गई। इसके अलावा 1942-43 में बड़ा जलसा हुआ। इसमें रेलवे स्टेशन से छात्र अपने हाथों से बग्घी खींचकर कैंपस तक लाए थे। इतना तो मुझे याद आ रहा है।

सवाल- एएमयू में लगी जिन्ना की तस्वीर पर जो विवाद हो रहा है, उसे किस तरह देखते हैं?
जवाब- मैं जब पढ़ता था तब भी तस्वीर लगी थी। लोक मान्य तिलक एक गंभीर मुकदमे में (अंग्रेजों के खिलाफ) एक बार छह साल के लिए और एक बार आठ साल के लिए जेल गए थे। इसके बाद 1916 में तिलक पर एक और मुकदमा चला। जिन्ना ने तिलक का मुकदमा लड़ा और बरी करवाया। तिलक का मुकदमा लड़ने वाले और बरी कराने वाले का विरोध ये लोग क्यों कर रहे हैं। मुझे लगता है कि यह सब चुनाव के मकसद से हो रहा है। कहीं चुनाव हो रहा है और कहीं होने वाला है। यही सबसे बड़ी वजह है।





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