Wednesday, 2 May 2018

राष्ट्रपति कोविंद बोले-कैंपस में स्वतंत्र विचारों को बढ़ावा देना विश्वविद्यालयों की सर्वोच्च जिम्मेदारी

[ad_1]

नई दिल्लीः देश में किसी ना किसी मुद्दे पर किसी ना किसी विश्वविद्यालय से विरोध-प्रदर्शन की खबर आ ही जाती है. पिछले कुछ दिनों में देश के कई विश्वविद्यालयों से ड्रेस कोड और मोबाइल पर पाबंदी जैसे नियम लागू करने की खबरें सामने आई थी. देश के विश्वविद्यालयों को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुधवार को नई दिल्ली में कहा कि विश्वविद्यालयों की सर्वोच्च जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करने की है कि उनके परिसर ऐसी जगहों के रूप में उभरे जहां स्वतंत्र अभिव्यक्ति एवं विचारों को बढ़ावा मिले , प्रयोगधर्मिता को प्रोत्साहित किया जाए और नाकामी का उपहास ना उड़ाया जाए.


उन्होंने राष्ट्रपति भवन में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक के समापन सत्र में कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि विश्वविद्यालय अपने दीक्षांत समारोह नियमित रूप से एवं समय पर आयोजित करें क्योंकि दीक्षांत समारोह होने एवं डिग्रियां बांटी जाने तक एक साल का शैक्षणिक सत्र पूरा नहीं होता.


 



यह भी पढ़ेंः वेलेंटाइन डे को लखनऊ यूनिवर्सिटी में 'महाशिवरात्रि की छुट्टी', एडवाइजरी में कहा- कैंपस आए तो होगी कार्रवाई


कोविंद ने विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी के मुद्दे को रेखांकित करते हुए कई सुझाव दिए. राष्ट्रपति ने कहा कि हर विश्वविद्यालय की प्रतिभाओं को आकर्षित करने की क्षमता उसकी खुद की प्रतिष्ठा एवं गुणवत्ता पर भी निर्भर करती है ‘‘ इसलिए अपने साथियों में सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए प्रतिस्पर्धा करें और प्रतिभा आकर्षित करने और उन्हें अपने यहां बनाए रखने को लेकर आपकी सफलता स्वत : बेहतर हो जाएगी. ’’ 


यह भी पढ़ेंः पुणे की यूनिवर्सिटी का फरमान: सिर्फ शाकाहारी छात्रों को मिलेगा गोल्ड मेडल


उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों को देश के सामने मौजूद चुनौतियों से निपटने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए जिनमें से कई के लिए रचनात्मक और नवोन्मेषी हल की जरूरत है. 


यह भी पढ़ेंः पटना के मगध महिला कॉलेज में जींस और पटियाला सूट बैन, प्रिंसिपल ने दिए बेतुके तर्क


कोविंद ने कहा , ‘‘ यह सुनिश्चित करना आपकी सर्वोच्च जिम्मेदारी है कि आपके परिसर ऐसी जगहों के रूप में उभरे जहां स्वतंत्र अभिव्यक्ति एवं विचारों को बढ़ावा मिले , प्रयोगधर्मिता को प्रोत्साहित किया जाए और नाकामी का उपहास ना उड़ाया जा बल्कि उन्हें सीखने की प्रक्रिया का ही हिस्सा माना जाए. ’’ 




[ad_2]

Source link

0 comments: