भोपाल: मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो गुरुवार को एक कार्यक्रम में कहा था कि 'मेरी खाली कुर्सी पर अब काई भी बैठ सकता है' उसके मायने निकाले जा रहे हैं. हालांकि शिवराज ने यूटर्न लेते हुए अपने बयान को 'मजाक' बताया था लेकिन सच तो यह है कि पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में उनकी जगह नए चेहरे को लाने पर तेजी से मंथन चल रहा है. कोशिश चल रही है कि साफ छवि वाला, संघ का करीबी, सभी वर्गो और नेताओं में गहरी पैठ बनाने वाले किसी युवा चेहरे को जिम्मेदारी सौंपी जाए.
पार्टी और संघ फैसला जल्दी लेने का मन बना चुका है, क्योंकि अगर देर हुई तो शिवराज के चेहरे पर ही पार्टी को अगला चुनाव लड़ना होगा. पार्टी को लगता है कि नए चेहरे से कांग्रेस 15 साल का हिसाब भी नहीं मांग पाएगी और यह भी संभव है कि नया चेहरा देख जनता व्यापम से लेकर आरती घोटाले तक को भूल जाए. किसान आत्महत्याओं, किसान गोलीकांड और भावांतर के भंवर पर पर्दा डालने में भी नया चेहरा मददगार साबित हो.
उधर, कांग्रेस ने भी चुनाव से पहले अपने संगठन में बड़ा बदलाव किया है. प्रदेश अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ को बनाया गया है तो चुनाव प्रचार अभियान समिति का प्रमुख युवा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को बनाया गया है. पिछले दिनों दोनों नेताओं के दौरे और मेगा रोड शो से कार्यकर्ता उत्साहित हैं.
सूत्रों का कहना है कि विभिन्न माध्यमों से आई सूचनाओं ने आरएसएस को राज्य के वर्तमान नेतृत्व पर विचार के लिए मजबूर किया है. उसी के चलते प्रदेशाध्यक्ष के पद पर नंदकुमार सिंह चौहान के स्थान पर राकेश सिंह को जिम्मेदारी सौंपी गई है. अब सत्ता के खिलाफ पनपे असंतोष की तोड़ खोजने का दौर जारी है.
आरएसएस के सूत्रों का दावा है कि सत्ता में नेतृत्व परिवर्तन का मन बना लिया गया है, कई नामों पर चर्चा जारी है. अमित शाह का भोपाल दौरा भी इसी मसले को लेकर है. यह बात अलहदा है कि सत्ता और संगठन के लोग अभी इस बात को स्वीकार नहीं रहे हैं. केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत कह रहे हैं कि अगला चुनाव शिवराज के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा और 'बच्चों के मामा' ही मुख्यमंत्री होंगे. बताते चलें कि दिल्ली से लौटे शिवराज ने गुरुवार को भोपाल में आनंद व्याख्यान में एक सांकेतिक बयान देकर बदलाव की चर्चाओं को और हवा दे दी थी. उन्होंने कहा था, "दुनिया में कुछ भी परमानेंट नहीं है, मुझे जल्दी जाना है, मेरी कुर्सी पर अब कोई भी बैठ सकता है."
शिवराज के बयान पर राज्य की सियासत गरमा गई, कांग्रेस नेताओं ने तरह-तरह के ट्वीट किए. जब चौहान को लगा कि उनके बयान का बड़ा राजनीतिक मायने है, तो उन्हें कुछ घंटों बाद ही एक ट्वीट करके न केवल सफाई देनी पड़ी, बल्कि अपने बयान को ही मजाक करार दे दिया.
मुख्यमंत्री ने आनंद व्याख्यान में दिए बयान के लगभग पांच घंटे बाद ट्वीट किया था- "कार्यक्रम में मेरे लिए आरक्षित रखी गई कुर्सी को लेकर थोड़ा सा मजाक क्या कर लिया. कुछ मित्र अत्यंत आनंदित हो गए! चलो, मेरा आनंद व्याख्यान में जाना सफल हो गया."
पिछले दिनों आरएसएस सहित विभिन्न संस्थाओं ने चुनाव पूर्व सर्वेक्षण कराए हैं, जिसमें राज्य सरकार की स्थिति के संदर्भ में सकारात्मक संदेश नहीं मिले हैं. यही कारण है कि भाजपा और संघ की चिंताएं लगातार बढ़ती जा रही हैं. संघ के सूत्रों का कहना है कि अब से लगभग एक दशक पहले डंपर कांड ने जोर पकड़ा था, मगर कोर्ट ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी, उसके बाद व्यापम घोटाला आया, उससे भी सरकार और पार्टी उबर आई, मगर इस समय जारी रेत खनन ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है. अवैध रेत खनन बड़ा मुद्दा बन गया है. विभिन्न वर्गो को योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. मुख्यमंत्री के आसपास के नौकरशाहों की छवि भी अच्छी नहीं है. साथ ही कई अन्य फैसलों ने भी सरकार की छवि को प्रभावित किया है.
राजनीति के जानकारों का कहना है कि शिवराज का दिल्ली दौरा और उसके लौटते ही उनका 'खाली कुर्सी' वाला बयान यूं ही नहीं था, बल्कि भाजपा के भीतर चल रही जोड़-तोड़ की हकीकत उनकी जुबान से सार्वजनिक तौर पर सामने आ गई. शिवराज गंभीर नेता हैं, वे कभी भी हल्की बात नहीं करते. उनके बयान के निहितार्थ होते हैं, जिसे कांग्रेस ने तुरंत लपक लिया और आखिर में शिवराज को सफाई देनी पड़ी.
पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बीच रामलाल के साथ मध्यप्रदेश का दौरा राजनीतिक हलचल की ओर इशारा करता है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद मध्यप्रदेश पर भी पार्टी कोई फैसला ले सकती है, या फिर शिवराज के नेतृत्व में ही चुनाव में जा सकती है. ये दोनों विषय पार्टी हाईकमान और संघ के बीच दिवालघड़ी के पेंडुलम की तरह डोल रहे हैं. इसके बावजूद इतना तो तय है कि अगले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा निश्चिंत नहीं है, भले ही उसने 'अबकी बार 200 पार' का नारा दे दिया हो.
(इनपुट IANS से)
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