संभ्रांत और आर्थिक रूप से उच्च वर्ग हमारे देश के सिनेमा को हमेशा सड़क के किनारे पलने वाला कुत्ते का पिल्ला समझता है, आर्थिक रूप से कमज़ोर तबका अब मल्टीप्लेक्स की टिकट खरीदने को भी बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ाने के समान एक सपना ही समझता है. मध्यम वर्ग ...
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नेपथ्य से आती है एक रौबीली आवाज़ और परदे के पीछे का सच डर कर निकल आता है
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