सरोज ने बताया कि कुछ सालों पहले तक वह सिर्फ बांस की डालिया बनाया करती थीं. इससे कुछ खास कमाई भी नहीं हो पाती थी.कुछ महीनों पहले उन्होंने बांस से डेकोरेटिव आइटम्स बनाने की ट्रेनिंग ली. सरोज ने कहा कि इस काम ने पैसे के साथ ही सम्मान भी दिया है. आज लोग उनके गांव को सरोज के नाम से जानते हैं.
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