Monday, 1 July 2019

नाक टूटी, ताने सुने, कश्मीर की सबसे युवा रग्बी कोच की कहानी

नई दिल्ली घर वालों से छिपछिप कर पहले फुटबॉल और फिर खेलने वाली ने जब राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा लिया तब भी उनका संघर्ष कम नहीं हुआ। खेलते हुए जब एकबार उनकी नाक टूटी तो रिश्तेदारों ने यह कहना शुरू कर दिया कि खेल छोड़ दो क्योंकि शादी भी तो करनी है। जहां इर्तिका के पिता ने शुरू में उनके खेलने का विरोध किया वहीं बाद में जब एक वक्त वह डिप्रेशन में चली गईं तो उन्होंने ही साथ दिया। पिता ने ही उन्हें हौसला रखने की हिम्मत दी। 24 साल की इर्तिका अयूब जम्मू-कश्मीर की सबसे कम उम्र की रग्बी कोच हैं। खेल में राजनीति का शिकार भी हुईं लेकिन हिम्मत नहीं हारी। इर्तिका अभी कश्मीर की करीब 50 लड़कियों को रग्बी सिखा रही हैं। दबाव के आगे नहीं झुकीं इर्तिका ने 2017 में नैशनल लेवल पर स्नो रग्बी खेली और गोल्ड मेडल जीता। रग्बी ऑल इंडिया फेडरेशन ने उन्हें रग्बी डिवेलपमेंट ऑफिसर के तौर पर नियुक्त किया तो कोचिंग शुरू हुई। बाद में इर्तिका के सीनियर्स ने ही उनकी इज्जत पर सवाल उठाना शुरू किया। उन्हें धमकियां मिलने लगीं और उनसे रिजाइन करवा लिया गया। इर्शिता ने बताया, ‘मैं टूट चुकी थी और डिप्रेशन में चली गई। छह महीने डिप्रेशन में रही लेकिन पापा मुझे लगातार मोटिवेट करते रहे। उन्होंने मुझे हिम्मत दी और मैं लड़ने के लिए फिर से उठ खड़ी हुई। पहले रग्बी के बारे में पता भी नहीं था इर्तिका ने बताया कि जब मैं हायर सेकंडरी मैं थी तो घर वालों से छुपकर स्कूल में फुटबॉल खेलती थी। फिर स्पोर्ट्स टीचर ने मुझसे रग्बी में हिस्सा लेने को कहा। मुझे रग्बी के बारे में कुछ पता नहीं था। उनके कहने पर मैंने खेलना शुरू किया। स्कूल स्तर पर और फिर जिला स्तर पर गोल्ड जीता। नैशनल के लिए सिलेक्शन हुआ तो घर वालों ने बाहर भेजने से मना कर दिया। कुछ साल बाद चाचू ने पापा को मनाया। नैशनल में सिल्वर जीतने पर पापा सपोर्ट में आए। अब अपने दम पर देती हैं लड़कियों को ट्रेनिंग इर्तिका ने बाद में इंडिपेंडेंट काम करना शुरू किया। अब वह करीब 50 लड़कियों को कोचिंग दे रही हैं। अपनी पॉकेट मनी से वह उन्हें हफ्ते में तीन दिन रिफ्रेशमेंट भी देती हैं। इर्तिका कहती हैं कि मेरे पास इक्विपमेंट्स (जरूरी सामान) नहीं हैं लेकिन हिम्मत है। मैं चाहती हूं कि ये लड़कियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलें। इर्तिका ने बताया कि पिछले दिसंबर में गवर्नर के अडवाइजर ने इक्विपमेंट्स मंजूर किए थे हालांकि वह मुझे आज तक नहीं मिले।


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