Thursday, 16 August 2018

जिसकी छांव तले गांव का मेला लगता था, वो बूढ़ा बरगद नहीं रहा

असम के जोरहाट जिले के बोरगांव का बूढ़ा बरगद नहीं रहा. ये 200 साल पुराना बरगद गिरने के साथ ही अपने साथ ले गया उस छाव को, जिसके तले गांव का मेले लगा करता था. गांव की न जाने कितनी पीढ़ियों ने इसके छांव तले मिट्टी के घरोंदे बनाए थे, न जाने कितने सावन इसकी डालियों पर झूले लगे थे. नहीं रहा वो बोरगांव का सदियों से खड़ा बूढ़ा बरगद. जी हां, रेजा-रेजा बिखरती गई बरगद की ज़िंदगी शाखाओं ने छोड़ दिया इसका साथ और इसके साथ ही गमगीन हो गया है बोरगांव का ज़र्रा-ज़र्रा. गांव में हर किसी के साथ जुड़ी थी इस बूढ़े बरगद की निशानी. अब इसके गिर जाने पर पूरा गांव फफक पड़ा है. 200 साल से जिस दरख़्त के साए तले इस गांव के लोग आसमान छूने के सपने संजोते रहे. आज उसी दरख़्त के जाने पर सब सिर झुकाए बैठे हैं. बोरगांव का बरगद हर किसी के लिए अपना था. इसकी छांव में लोग खुशियां मनाते थे. पूरा गांव इसी की छांव में तीज-त्योहार की मिठाईयां खाता था, गांव के लोग आपसी झगड़े सुलझाते थे. बोरगांव के लोगों का कहना कि इस बरगद के गिरने से सैकड़ों पक्षियों का आसरा भी जाता रहा.

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